बिहार के सीएम नीतीश कुमार के बुलावे पर दर्जन भर से अधिक दलों के नेता पटना तो पहुंच रहे हैं, लेकिन चुनौती अभी जस की तस है। नीतीश कुमार ने प्रयास कर सभी दलों को एक प्लेटफॉर्म पर आने को राजी तो कर लिया है। लेकिन ये सभी ‘बोगियां’ एक इंजन से बंध कर बिना डिरेल हुए चलती रहेंगी, यह चुनौती अभी भी बरकरार है। दरअसल, शुक्रवार 23 जून को पटना में हो रही बैठक का असली मकसद दलों का दिल मिलाना नहीं है। क्योंकि दलों के बीच दूरियां इतनी है कि दिल मिलने से पहले आंखें मिल जाएं तभी बात आगे बढ़ सकती है।
कांग्रेस पर सबकी निगाहें
इस विपक्षी एकता की कोशिशों में सबसे बड़ी जरुरत कांग्रेस है। लेकिन सबसे बड़ी मुसीबत भी कांग्रेस है। कांग्रेस ही वो दल है जो पूरे देश में भाजपा के सामने है। जबकि कांग्रेस के साथ मुसीबत ये है कि कई राज्यों में वो क्षेत्रीय दलों के भी खिलाफ है। इस बैठक में भी सबकी निगाहें कांग्रेस पर है क्योंकि कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच सामंजस्य कम ही राज्यों में है। बिहार में तो कांग्रेस के साथ राजद और जदयू है। महाराष्ट्र में भी एनसीपी और शिवसेना (उद्धव गुट) कांग्रेस के साथ है। लेकिन यूपी, पश्चिम बंगाल, पंजाब, दिल्ली में कांग्रेस की लड़ाई भाजपा के साथ दूसरे दलों से भी है।
केजरीवाल, ममता, अखिलेश का एक ही सवाल
दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस की टक्कर भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी से है। पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का टकराव तृणमूल कांग्रेस से है। जबकि यूपी में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का मेल पहले ही फेल हो चुका है तो दोनों एक दूसरे के खिलाफ हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के साथ कांग्रेस बातचीत के लिए राजी हो जाए, यह इस बैठक का पहला और मेन एजेंडा होगा। सीट शेयरिंग की कोई बात इस बैठक में नहीं होगी। बल्कि इस बैठक में इस बात पर चर्चा होगी कि आगे की लड़ाई कैसे लड़ी जाए।
PM उम्मीदवार पर भी अभी फैसला नहीं
इस बैठक में न तो सीट शेयरिंग पर बात होगी और न ही पीएम उम्मीदवार के नाम पर चर्चा होगी। इन बातों का फैसला आज की बैठक के बाद होगा। अगर आज की बैठक सक्सेसफुल हो जाती है तो आगे की रणनीति के लिए अगली बैठक दिल्ली में हो सकती है। नीतीश कुमार के करीबी मंत्री विजय कुमार चौधरी ने मीडिया को बताया है कि पहले हम एकजुट होकर कैसे लड़ेंगे उसपर चर्चा होगी। अन्य मुद्दों पर भी चर्चा हो तो अच्छा है।