बिहार की राजनीति में भले ही नीतीश कुमार मुख्यमंत्री के तौर पर एक ताकत बने हुए हैं लेकिन यह माना जा रहा है कि आने वाला वक्त भाजपा और राजद के बीच आमने सामने के मुकाबलों का है। लेकिन इस आमने सामने की लड़ाई में भी नीतीश कुमार की प्रासंगिकता बनी हुई है। भाजपा उन्हें अपने खेमे में चाहती रही है। राजद भी उनका मर्म समझ कर उन्हें अपने खेमे में रखने का भरपूर प्रयास किया। अब ऐसी ही कोशिश चिराग पासवान को लेकर दिख रही है। राजद की पूरी कोशिश है कि वे भाजपा का खेमा छोड़कर विपक्ष की ओर आ जाएं। तो दूसरी ओर भाजपा की हर कोशिश चिराग को अपना बनाए रखने की है।
‘जातीय सर्वे का नहीं मिला कोई फायदा, तो बीजेपी में शामिल हो गए सीएम नीतीश’
चिराग पासवान और नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में जरुरी भी हैं और मजबूरी भी। मजबूरी इसलिए कि इन दोनों नेताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता चाहिए और अनमने ढंग से ही सही भाजपा और जदयू इन दोनों को यह देने का प्रयास भी करती ही है। मसलन, नीतीश कुमार को भाजपा भी सीएम बनाने के लिए मजबूर हुई और राजद भी। उसी तरह चिराग पासवान को भाजपा ने नीतीश कुमार से तमाम नजदीकियों के बावजूद 2019 के चुनाव में सीटें कम नहीं की। भाजपा ने अपनी सीटें घटा ली थी लेकिन चिराग पासवान को लोकसभा चुनाव में उतनी ही सीटें मिली जितनी 2014 में मिली थी। साथ ही 2019 में एक राज्यसभा की सीट भी मिली।
एक बार फिर चाहे-अनचाहे नीतीश कुमार और चिराग पासवान एक ही साइड आ गए हैं। दोनों एनडीए का हिस्सा हैं। वैसे तो इनकी आइडियोलॉजी एक दूसरे से सिर्फ भाजपा का सहयोगी होना छोड़कर कहीं मेल नहीं खाती। फिर भी ये एक दूसरे के साथ मिलकर 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं। चिराग पासवान ने अपनी राजनीतिक जमीन ही नीतीश नीति का विरोध कर बनाई है। लेकिन चुनावी मजबूरी में दोनों को फिर एक ही पाला मिल गया है। चिराग पासवान एनडीए में होने के बावजूद थोड़े नाराज दिख रहे थे क्योंकि वे नीतीश कुमार की वापसी से खास खुश नहीं थे। दूसरी ओर उनकी सीटों को लेकर नए समीकरण में असहमति होने की आशंका गहरा गई है। मौके का फायदा लालू यादव उठाना चाह रहे हैं। क्योंकि एनडीए में चिराग पासवान को अधिकतम 6 सीटें (पारस गुट को मिलाकर) से अधिक मिलने की उम्मीद नहीं है। जबकि महागठबंधन चिराग पासवान को बिहार में 8 सीटें और यूपी में 2 सीटों का ऑफर दे रहा है जो एनडीए के मुकाबले डेढ़ गुना है।
महागठबंधन के ऑफर की चर्चा के बीच चिराग पासवान और अमित शाह की मुलाकात हुई है और संभावना यह है कि भाजपा चिराग पासवान को अपने फॉर्मूले पर मनाने में कामयाब रहेगी। दूसरी ओर यह भी माना जा रहा है कि नीतीश कुमार भी लोकसभा में सीटों की संभावित संख्या का आश्वासन पाने के बाद ही एनडीए में लौटे होंगे। चिराग पासवान और नीतीश कुमार की पूछ बताती है कि बिहार की राजनीति में नीतीश जरुरी हो जाते हैं और चिराग पासवान मजबूरी। अगर ऐसा नहीं होता तो भाजपा और राजद दोनों इन दोनों के लिए इतनी मशक्कत करते न देखे जाते।