बिहार में जो राजनीतिक उलटफेर चल रहा है, उसमें किसी दल को कुछ खोने का डर है तो किसी को कुछ पाने की संभावना। इस बीच कांग्रेस एक ऐसा दल है जो यह चाहेगा कि सरकार रहे या जाए, कम से कम कांग्रेस बनी रहे। कांग्रेस को डर है कि उसके विधायक या विधान पार्षद टूट सकते हैं। हालांकि बिहार कांग्रेस के नेता अभी टूट की संभावना से इनकार कर रहे हैं। लेकिन यह भी उतना ही बड़ा सच है कि कांग्रेस को सबसे अधिक डर है। यह डर क्यों है, इसका जवाब इतिहास में छुपा है।
सीएम नीतीश ने रोका राजद के मंत्रियों का काम
दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब नीतीश कुमार राजद और कांग्रेस को छोड़ रहे हैं। 9 अगस्त 2022 को राजद और कांग्रेस के साथ जब नीतीश कुमार ने सरकार बनाई, वो घटना भी पहली बार नहीं हुई थी। लेकिन कांग्रेस यह चाहती है कि जो मार्च 2018 में हुआ, वो कम से कम जनवरी 2024 में न हो। दरअसल, जुलाई 2017 में नीतीश कुमार ने जब महागठबंधन से नाता तोड़ा था। उसके कुछ दिन बाद कांग्रेस के चार विधान पार्षदों ने जदयू में शामिल होने का ऐलान कर दिया था। इसमें कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी भी शामिल थे, जो आज जदयू के प्रमुख नेताओं में शामिल हैं।
1 मार्च 2018 को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के 67वें जन्मदिन के मौके पर कांग्रेस के चार नेता जदयू में शामिल हो गए। तब ये चारों पूर्व नेता सीएम नीतीश के आवास पहुंचे थे। वहां उन्होंने नीतीश कुमार को जन्मदिन की शुभकामनाएं देने के साथ-साथ जदयू का दामन भी थाम लिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ही चारों कांग्रेसी नेताओं को जेडीयू की प्राथमिक सदस्यता प्रदान की। इनमें कांग्रेस के चार विधान पार्षद अशोक चौधरी, दिलीप चौधरी, तनवीर अख्तर और रामचंद्र भारती शामिल थे।
कांग्रेस को यही डर इस बार भी सता रहा है। दरअसल, कांग्रेस के पास बिहार विधान परिषद में 4 और बिहार विधानसभा में 19 सदस्य हैं। चर्चा है कि विधानमंडल के लगभग दर्जनभर सदस्य जदयू में शामिल हो सकते हैं। चर्चा तो यहां तक है कि कुछ नेता भाजपा में भी शामिल हो सकते हैं। कांग्रेस ऐसी आशंकाओं से अब तक तो इनकार कर रही है। लेकिन डर इतना है कि कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल को पर्यवेक्षक भी बना दिया है।