पिछले कुछ सालों में नया पॉलिटिकल ट्रेंड निकला है, जिसमें चुनाव जीतने के बाद भी जीती हुई पार्टी या गठबंधन की टेंशन खत्म नहीं होती। या यूं कहें कि ज्यादा टेंशन चुनाव जीतने के बाद ही हो रही है। चुनाव खत्म होने के बाद नेता चुनने की प्रक्रिया तो लोकतांत्रिक है यानि सदन के नेता का चुनाव सदस्य कर लेते हैं। लेकिन ‘आलाकमान कल्चर’ पूरी तरह हावी हो चुकी है और वहां के ‘आशीर्वाद’ के बिना कुर्सी का प्रसाद किसी को नहीं मिलता। देश के दोनों मुख्य दल भाजपा और कांग्रेस में यही कल्चर है। एक अंतर ये है कि भाजपा युवा नेतृत्व को मौका दे रही है, जबकि कांग्रेस में अनुभव वाले नेता ही बाजी जीत रहे हैं।
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पांच साल कांग्रेस के तीसरे युवा नेता को झटका
वैसे तो कांग्रेस के पास कम ही राज्य बचे हैं लेकिन इनमें भी चुनाव जीतने के बाद सीएम की कुर्सी का सिरफुटौव्वल सरेआम दिखा है। पिछले पांच साल में कांग्रेस ने तीन युवा नेताओं को कुर्सी मिलते मिलते रह गई। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया पर कमलनाथ भारी पड़े। तो राजस्थान में अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को पछाड़ दिया। कर्नाटक में भी यही हुआ और सिद्धारमैया ने डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री पद से ही संतोष करने पर मजबूर कर दिया।
पार्टी में टूट के बाद भी कांग्रेस ने नहीं बदला स्टैंड
कर्नाटक चुनाव के पहले से ही सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच टकराव की स्थिति थी। इस टकराव का असर चुनाव पर तो नहीं पड़ा, लेकिन सीएम पद को लेकर बेंगलुरू में फैसला नहीं हो सका। दिल्ली दरबार से जो फैसला हुआ, उसमें डीके शिवकुमार को पीछे हटना पड़ा। कांग्रेस ने ऐसा निर्णय तब लिया जब, मध्यप्रदेश में वो एक टूट झेल चुकी है और राजस्थान में टूट के मुहाने पर खड़ी है। मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने न सिर्फ पार्टी तोड़ी बल्कि सरकार भी गिरा दी। जबकि राजस्थान में सचिन पायलट कांग्रेस का रनवे छोड़ कब-कहां उड़ जाएंगे, कोई ठिकाना नहीं।
भाजपा के हालात दूसरे
एक तरफ लीडरशिप क्राइसिस के वक्त कांग्रेस ज्यादा अनुभव और उम्र वाले नेताओं को आगे कर देती है। तो दूसरी ओर भाजपा युवाओं पर भरोसा जताती है। 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी को किनारे करते हुए नरेंद्र मोदी को आगे किया। उत्तर प्रदेश में भी सत्ता मिलने पर योगी आदित्यनाथ आए। कर्नाटक में भले ही येदियुरप्पा के इर्द-गिर्द ही भाजपा घूमती रही है लेकिन सीएम पद से उन्हें उतार कर बसवराज बोम्मई को जगह दी गई। महाराष्ट्र में भी देवेंद्र फडणवीस जैसे नेता को आगे बढ़ाया गया।