आजीवन कारावास की सजा पाए आनंद मोहन को सरकार ने कानून में संसोधन कर जेल से रिहा कर दिया है। रिहाई के बाद से सरकार फैसले का विरोध और समर्थन दोनों हो रहा है। अब पूर्व सांसद आनंद मोहन की रिहाई का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। शनिवार को उनकी रिहाई को डीएम जी कृष्णैया की पत्नी उमा देवी ने चुनौती दी है। टी. उमा देवी ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि उनके पति के हत्यारे आनंद मोहन को जेल से रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले पर रोक लगाई जाये। उमा देवी ने पहले ही कहा था कि नीतीश सरकार ने बेहद गलत फैसला लिया है, अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रूख किया है।
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वोट बैंक की राजनीति के लिए ऐसा किया गया
जी कृष्णैया की पत्नी उमा सदमे में हैं। वह कहती हैं- ऐसा वोट बैंक की राजनीति के लिए किया जा रहा है। वह रिहाई को खुद के साथ अन्याय बताती हैं। पहले दोषी को फांसी की सजा हुई थी, फिर उसे उम्रकैद में बदल दिया गया। अब सरकार उसकी रिहाई करा रही है। ये बिल्कुल सही नहीं है। उमा देवी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि कानूनी तौर पर ये स्पष्ट है कि आजीवन कारावास का मतलब पूरी जिंदगी के लिए जेल की सजा है। इसे 14 साल की सजा के तौर पर नहीं माना जा सकता है। आजीवन कारावास का मतलब आखिरी सांस तक जेल में रहना।
पटना हाईकोर्ट में भी PIL दायर
जी. कृष्णैया की पत्नी की ओर ये याचिका दायर करने वाली एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड तान्या श्री ने कहा कि स्व. जी. कृष्णैया की पत्नी ने अपने पति की हत्या के दोषी आनंद मोहन को छूट देने के आदेश का विरोध करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। आनंद मोहन की रिहाई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ है और रिहाई का फैसला गलत तथ्यों के आधार पर लिया गया है। वहीं आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ अमर ज्योति नामक युवक ने पटना हाईकोर्ट में भी पीआईएल दायर किया है। कारागार अधिनियम 2012 को संशोधित कर सरकार ने जो अधिपत्र निकाला है। उसके खिलाफ याचिका दायर की गई है। कोर्ट से सरकार की ओर से जारी उस अधिपत्र को निरस्त करने की अपील की है।