बिहार के पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत के श्रेष्ठ पुरस्कार ‘भारत रत्न’ देने का ऐलान केंद्र सरकार ने कर दिया है। इस ऐलान के बाद से ही अब इसका क्रेडिट लेने में प्रदेश के कई नेता कतारबद्ध हैं। बिहार के वर्तमान सीएम नीतीश ने एक तरफ जहाँ ट्वीट कर पीएम मोदी को इसके लिए धन्यवाद दिया है (हालांकि अपने इस ट्वीट में संसोधन कर उन्होंने ‘धन्यवाद’ वाले वाक्य को हटा दिया है), वहीँ पूर्व सीएम एवं राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने ट्वीट कर ये दावा किया है कि कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के लिए वे लगातार केंद्र सरकार से इसकी मांग करते आ रहे थे। इसके साथ ही उन्होंने ठाकुर को अपना गुरु भी बताया है। एक्स पर लालू ने लिखा है,” मेरे राजनीतिक और वैचारिक गुरु स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर जी को भारत रत्न अब से बहुत पहले मिलना चाहिए था। हमने सदन से लेकर सड़क तक ये आवाज़ उठाई, लेकिन केंद्र सरकर तब जागी, जब सामाजिक सरोकार की मौजूदा बिहार सरकार ने जातिगत जनगणना करवाई और आरक्षण का दायरा बहुजन हितार्थ बढाया। डर ही सही, राजनीती को दलित बहुजन सरोकार पर आना ही होगा।”
एक ओर जहाँ लालू यादव कर्पूरी ठाकुर को अपना गुरु होने का दावा कर रहे हैं। वहीँ दूसरी ओर इतिहास कुछ और ही किस्सा बयान करती है। निजी तौर पर देखा जाये तो अपने तथाकथित गुरु कर्पूरी ठाकुर को वे ‘कपटी ठाकुर’ कहकर बुलाया करते थे। इसका जिक्र वरिष्ठ पत्रकार संकर्षण ठाकुर की किताब ‘ब्रदर्स बिहारी’ में भी देखा जा सकता है। यही नहीं एक समय का वाकया ये कहता है कि एक बार विधान सभा के नेता प्रतिपक्ष कर्पूरी ठाकुर की तबीयत ख़राब थी और भूख भी लगी थी। तत्काल घर जाने के लिए उनके पास उस समय गाडी तो थी पर तेल भरवाने को जेब में पैसे नहीं थे। अतः उन्होंने एक छोटी सी चिट्ठी लिखकर लालू यादव को भिजवाई कि उन्हें वे अपनी जीप थोड़ी देर के लिए दे दें। लेकिन लालू ने जीप तो नहीं ही दी, साथ ही उस पर्ची का जवाब देते हुए कहा कि आप बिहार के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं, कम से कम एक कार तो खरीद लीजिये।
देखा जाये तो राजनेता अक्सर अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से जनता को लुभाने का काम करते हैं, स्वयं को उनका हितैषी सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहते हैं। पर कर्पूरी ठाकुर ने अपने व्यवहार, अपनी मृदुलता ,अपनी सरलता और अपनी सादगी से लोगो का दिल जीता और जननायक कहलाये। उस वक्त जब संचार की सुविधा, विशेषतः बिहार जैसे प्रदेश में ‘न’ के बराबर थी, तब भी कर्पूरी को प्रदेश के किसी भी कोने में गरीबों और असहायों पर हुए जुल्म की खबर भनाक से मिल जाती थी और जननायक बिना किसी देरी के वहां पहुच भी जाते थे, साथ ही यथाशीघ्र उसका समाधान भी करते थे। केवल प्रदेश के लालू, रामविलास या नीतीश ही नहीं, बल्कि पूरे देश के नेतागण जननायक से प्रभावित रहे हैं।