बिहार में सीवान लोकसभा सीट की चर्चा बिना पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के पूरी नहीं हो सकती। मो. शहाबुद्दीन चार बार सीवान के सांसद रहे लेकिन कई मामलों में कानूनी सजा मिलने के बाद वे लोकसभा की चुनावी रेस से बाहर हो गए। अब उनकी मौत भी हो चुकी है। लेकिन राजनीतिक हलकों में आज भी सीवान लोकसभा की चर्चा बिना शहाबुद्दीन फैक्टर के पूरी नहीं होती। मो. शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब ने राजनीतिक विरासत संभालने की कोशिश तो की लेकिन शहाबुद्दीन के जिंदा रहते भी यह सफल नहीं हो सका। ऐसे में अब शहाबुद्दीन जिंदा नहीं हैं और हिना शहाब की अपनी पार्टी राजद से दूरियां बढ़ गई हैं, तो क्या उनका राजनीतिक कॅरियर खत्म मान लिया जाए? राजनीतिक जानकार बताते हैं कि राजद के बाद भी हिना शहाब के पास दो रास्ते हैं, जहां से वे मो. शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत को बचाने और अपना राजनीतिक वजूद बनाने की कोशिश कर सकती हैं।
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राजद से लगातार बढ़ रही शहाबुद्दीन परिवार की दूरी!
शहाबुद्दीन की मौत के बाद ऐसा माना जा रहा है कि लालू परिवार ने हिना शहाब से किनारा कर लिया है। ऐसा इसलिए भी संभव है क्योंकि राजद के टिकट पर पिछले दो लोकसभा चुनावों में हिना शहाब की हार ही हुई है। हालांकि सिर्फ दो लोकसभा चुनावों में हार ही कारण होती तो मीसा भारती का नाम भी चुनावी लिस्ट से कट जाता क्योंकि पाटलिपुत्र सीट से वे भी दो बार हार चुकी हैं। लेकिन हिना शहाब के मामले में यह माना जा रहा है कि उनसे दिक्कत तेजस्वी यादव से है। तेजस्वी यादव ने यह सबके सामने दिखाया भी है और सीवान में अपनी जन विश्वास यात्रा में उन्होंने न तो शहाबुद्दीन की पत्नी को आमंत्रित किया और न ही उनसे मिले।
हिना शहाब के पास रास्ते
तेजस्वी ने हिना शहाब से दूरी बनाते हुए अपनी राजनीतिक चाल लगभग स्पष्ट कर दी है। ऐसे में हिना शहाब के पास दूसरे रास्ते की तलाश मजबूरी ही है। दरअसल, शहाबुद्दीन का इतिहास ऐसा रहा है कि उन्हें जमीन मिलनी आसान भी नहीं है। क्योंकि जिस तरह भाजपा और हिना शहाब की नजदीकी मुश्किल है, उसी तरह जदयू और हिना शहाब के भी एक दूसरे के साथ आने की संभावना कम है। इसके बावजूद दो रास्ते हैं, जिनपर चलती हुई हिना शहाब अपनी राजनीति जिंदा रख सकती हैं।
चिराग के साथ संभावना
लोजपा रामविलास सुप्रीमो चिराग पासवान और शहाबु द्दीन की फैमिली से कोई दुराव नहीं है। चिराग पासवान शहाबुद्दीन के घर जाकर उनके परिजनों से मिल चुके हैं। चिराग बिहार में राजनीतिक जमीन तैयार करने और उसे मजबूत करने के प्रयास में हिना शहाब के साथ आ सकते हैं। हालांकि दोनों में इस स्तर पर बात हुई है या नहीं, यह अभी कहा नहीं जा सकता है।
प्रशांत किशोर भी हैं विकल्प
दूसरी ओर हिना शहाब और प्रशांत किशोर भी साथ आ सकते हैं। प्रशांत तेजी से चुनावी राजनीति में उतरने की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में वे ऐसी ताकतों को अपने साथ मिला रहे हैं, जिनका कहीं और जाना मुश्किल हो रहा है। मसलन, सारण में प्रशांत किशोर ने भाजपा में रहे सच्चिदानंद राय को मिला लिया। इसी तरह यह संभावना जताई जा रही है कि सीवान में प्रशांत और हिना शहाब साथ आ सकते हैं। प्रशांत को इसमें सीधा फायदा हिना शहाब के समर्थकों के आधार के रूप में मिलेगा। जबकि हिना को कुशल रणनीतिकार का साथ मिल सकता है। हालांकि आगे क्या होगा, यह आने वाले वक्त में साफ हो जाएगा।