[Team Insider] झारखंड में सत्ता की सीढ़ी आदिवासी वोट बैंक से होकर गुजरती है। यही कारण है कि इस वर्ग को नकार कर कोई झारखंड की राजनीति नहीं कर सकता। प्रदेश में 26 प्रतिशत से अधिक आदिवासी जनसंख्या है और इनके लिए प्रदेश की 81 में 28 विधानसभा सीट सुरक्षित है। 2019 के चुनाव में इन सीटों में 2 भाजपा, 19 जेएमए, 6 कांग्रेस और 1 जेवीएम के खाते में आई। जेवीएम से जीते बंधु तिर्की अब कांग्रेस में हैं।
आदिवासियों में अपनी पैठ को लेकर झामुमो ने गोलबंदी और तेज कर दी
आदिवासियों में अपनी पैठ को लेकर पहचान रखने वाली झामुमो ने इनकी गोलबंदी और तेज कर दी है। ताकि जिन सीटों पर भाजपा कम अंतर से जीती है। वहां अपनी दखल को और मजबूत कर ले। इसी कड़ी में झामुमो ने जनगणना में सरना आदिवासी कोड को शामिल करने की शानदान चाल रही। दुमका की अपनी छोड़ी हुई सीट जिस पर हेमन्त सोरेन के छोटे भाई बसंत सोरेन चुनाव लड़ रहे थे, उस उपचुनाव के अंतिम चरण में हेमन्त सोरेन ने विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर इससे संबंधित प्रस्ताव पारित करने का वादा किया। उसे पूरा भी किया।
आरएसएस आदिवासियों को हिंदू मानती
हालत यह रही कि भीतर ही भीतर विरोध के बावजूद भाजपा को इस प्रस्ताव का समर्थन करना पड़ा। हालांकि आरएसएस का स्टैंड इससे अलग रहा है। आरएसएस आदिवासियों को हिंदू मानती है। जनगरण कोड पर उठे विवाद के क्रम में भी संघ ने आदिवासियों के बीच जाकर जनगणना रजिस्टर के कॉलम में अपना धर्म हिंदू लिखने की खातिर प्रेरित करने के लिए अभियान चलाने का निर्णय किया था। दरअसल आदिवासियों का बड़ा वर्ग इसे अपनी अस्मिता का सवाल बना लिया।विभिन्न संगठन इसके लिए आंदोलन चलाते रहे। ह्यूमन चेन बनाने से लेकर विभिन्न आदिवासी बहुत प्रदेश में यहां की आवाज पहुंची। गोलबंदी चलती रही।
पहली जनगणना में ही आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम था
दरअसल पहली जनगणना में ही आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम था। मगर आजादी के बाद 1961 की जनगणना से इसे आउट कर दिया गया। आदिवासी संगठन उसकी वापसी की मांग अब भी कर रहे हैं। हेमन्त सोरेन वोट की राजनीति में इसके महत्व को समझते हैं। यही कारण है कि नीति आयोग की बैठक से लेकर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के फोरम पर अपने संबोधन में भी हेमन्त सोरेन इसे उठा चुके हैं। दिल्ली में सर्वदलीय शिष्टमंडल लेकर भी अमित साह से मिल चुके हैं।
ट्राइवल एडवाइजरी कमेटी से प्रस्ताव पारित कराकर राजभवन भेजा
ट्राइवल एडवाइजरी कमेटी से प्रस्ताव पारित कराकर राजभवन भेजा जा चुका है। राजभवन भी सर्वदलीय शिष्टमंडल मिल चुका है। हालांकि अंतिम समय में भाजपा ने इसे राजनीति बताते हुए राजभवन जाने से इनकार कर दिया। जानकार मानते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर यह भाजपा के लिए गले की हड्डी बन गई है। इसलिए इसके काट के रूप में बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय स्वाभिवान दिवस के रूप में मनाने का फैसला केंद्रीय कैबिनेट ने किया और देश भर में स्कूलों, पंचायतों में बिरसा जयंती मनी। मगर सरना कोड के सवाल पर अभी भी लगातर आंदोलन की आवाज उठ रही है।
असली मुद्दा झामुमो का है
जनगणना में सरना आदिवासी कोड पर मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन और उनकी पार्टी झामुमो जिस तरह से एक्शन कर रही है। उससे यही संदेश जा रहा है कि यह असली मुद्दा झामुमो का है। मगर हकीकत यह है कि यह उनके एजेंडे में था ही नहीं। कांग्रेस के एजेंडे को हेमन्त सोरेन ने हाईजैक कर लिया,भाजपा के खिलाफ अपना हथियार बना लिया।
सरना कोड कांग्रेस की देन
बाहरी लोगों को दोना दो कोना नहीं (स्वागत के लिए खाना दो मगर रहने के लिए जमीन नहीं) का नारा देकर बाहरी भितरी के मसले पर विवादों में रहे प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव कहते हैं कि सरना कोड कांग्रेस की देन है। कांग्रेस के घोषणा पत्र में था। हमने वादा लोगों से किया था। झामुमो का यह कभी एजेंडा ही नहीं रहा। वे इस मुद्दे पर कभी नहीं बोलते थे। रामेश्वर उरांव जोर देते हैं यह सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस का और मेरा एजेंडा रहा। मैंने पार्टी को कहा कि आपको ट्राइवल को लुभाना है,जोड़ना है जो सेंटिमेंटल मुद्दा है सरना कोड। कब मिलेगा, नहीं मिलेगा यह हम नहीं जानते हैं। प्रदेश के इलाके इलाके में हम ही आंदोलन कराते थे। सरकार पर दबाव बनाकर विधानसभा से पास कराया।