झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है। यहां राज्य की सत्ता पर ज्यादातर आदिवासी नेताओं का ही कब्जा रहा है। लेकिन, अब तक एक भी आदिवासी नेता लगातार 5 साल तक मुख्यमंत्री पद पर नहीं रह सका है। इतना ही नहीं, 23 सालों में 3 बार सूबे में राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा चुका है।
हाल ही में, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद राज्य में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई है। झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है और चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री पद के लिए नामांकन दाखिल किया है। हालांकि, राजभवन ने अभी शपथ ग्रहण का समय तय नहीं किया है।
झारखंड के 23 साल के इतिहास में कुल 11 मुख्यमंत्री बने हैं। इनमें से केवल एक, भाजपा नेता रघुबर दास, ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। बाकी सभी मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के बीच में ही किसी न किसी कारण से इस्तीफा दे चुके हैं।
झारखंड में अब तक छह नेताओं को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला है। इनमें अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन ने सबसे ज्यादा तीन-तीन बार मुख्यमंत्री पद संभाला है। अगर चंपई सोरेन मुख्यमंत्री बनते हैं, तो वह सातवें नेता होंगे।
झारखंड में मुख्यमंत्री पद की अस्थिरता के कारण
- राजनीतिक अस्थिरता: झारखंड में राजनीतिक दल अक्सर एक-दूसरे के साथ मिलकर सरकार बनाने में असमर्थ रहते हैं। इससे सरकारों का टिकना मुश्किल हो जाता है।
- आदिवासी राजनीति: झारखंड में आदिवासी राजनीति का एक बड़ा प्रभाव है। आदिवासी नेताओं के बीच आपसी मतभेद भी सरकारों की स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
- धार्मिक और जातीय संघर्ष: झारखंड में धार्मिक और जातीय संघर्ष भी सरकारों की स्थिरता को प्रभावित करते हैं।
झारखंड में मुख्यमंत्री पद की अस्थिरता का असर
झारखंड में मुख्यमंत्री पद की अस्थिरता का राज्य की विकास दर पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। सरकारें अपना पूरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पातीं, जिससे विकास योजनाओं को पूरा करने में देरी होती है। इसके अलावा, राजनीतिक अस्थिरता से राज्य में अशांति और हिंसा भी बढ़ती है।
झारखंड में मुख्यमंत्री पद की अस्थिरता को दूर करने के लिए राज्य में राजनीतिक स्थिरता लाना जरूरी है। इसके लिए राजनीतिक दलों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करना चाहिए और आदिवासी नेताओं के बीच आपसी मतभेदों को दूर करना चाहिए। इसके अलावा, राज्य में धार्मिक और जातीय संघर्ष को रोकने के लिए भी कदम उठाने की जरूरत है।