बिहार में 17 सालों से सरकार की ड्राइविंग सीट पर बैठी जनता दल यूनाइटेड की बागडोर एक बार फिर ललन सिंह को मिलने जा रही है। अभी भी उन्हीं के पास है। लेकिन जदयू के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन के लिए हुए चुनावी मंथन से पुराना नाम ही निकला। कोई दूसरा दावेदार भी सामने नहीं आया। लिहाजा ललन सिंह को जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष का ‘तख्तो ताज’ मिलने वाला है। लेकिन इस बार यह ताज और तख्त दोनों चुभेंगे। शनिवार को हो रही राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद ललन सिंह की ताजपोशी होगी।
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उपचुनाव में जदयू की हार से जश्न फीका
ललन सिंह की JDU में पहुंच पर किसी को कोई शक नहीं है। सीएम नीतीश कुमार के मौजूदा विश्वासपात्रों की टॉप लिस्ट में ललन सिंह का नाम शामिल है। लेकिन सीएम नीतीश का हाथ सिर पर रहने के बावजूद एक उपचुनाव में जदयू की हार ने ललन के दुबारा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का जश्न फीका कर दिया है। कुढ़नी उपचुनाव में जीत होती तो ललन की शान के कसीदे गढ़े जाते। लेकिन हार पर सब खामोश हो गए हैं। यही कारण है कि ललन को दुबारा मिलने वाला ताज कांटों भरा होगा। क्योंकि आगे उनसे उम्मीदों का स्तर कई गुना अधिक होगा।
हार के कारणों से ललन का तख्त कांटेदार
कुढ़नी उपचुनाव की समीक्षा में एक फैक्टर ये निकल कर आया है कि भूमिहार जाति के मतदाताओं ने जदयू को नहीं भाजपा को वोट दिया है। ऐसे में ललन सिंह की मुश्किल और बढ़ जाती है। भूमिहार राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह भी जब भूमिहारों का वोट नहीं जदयू को नहीं दिलवा सके, तो और क्या कहा जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में दूसरी बार मिल रहा राष्ट्रीय अध्यक्ष का तख्त ललन सिंह को और चुभ सकता है। क्योंकि हार पर सवाल सीधे कोई भले न पूछे, पर चर्चा तो चल ही रही है। क्योंकि पार्टी की नजर 2024 के लोकसभा चुनाव पर टिकी है। जिसमें जदयू की कोशिश तो नीतीश कुमार को पीएम पद तक पहुंचाने की होगी।