लोकसभा चुनाव में बिहार में बड़ा उलटफेर हुआ। पिछले चुनाव में 39 सीटें जीतने वाली एनडीए 30 सीटों पर सिमट गई। तीन दशकों के बाद बिहार से लेफ्ट को संसद में एंट्री मिली तो 10 साल बाद किसी निर्दलीय उम्मीदवार को बिहार की जनता ने संसद भेजा। तो पिछले चुनाव में कोई सीट नहीं जीतने वाले राजद ने चार सीटें जीतीं। राजद के लिए विमर्श के कई और मुद्दे हैं। विधानसभा में पिछले दो चुनावों से सबसे बड़ी पार्टी राजद को लोकसभा चुनाव में क्या हो जाता है, यह सभी की चर्चा का हिस्सा है। राजद में लालू यादव की चले या तेजस्वी यादव, नतीजा यही हो रहा है कि राजद लोकसभा में फिसड्डी साबित हो रहा है। वहीं राजद के लिए दुख का बड़ा कारण यह है कि उसके सहयोगी तो उसके कैडर वोट लेकर जीत जाते हैं, लेकिन सहयोगियों का वोट शायद राजद को नहीं मिलता। यही कारण है कि राजद का स्ट्राइक रेट इस चुनाव में भी खराब रहा है।
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राजद के साथ मुश्किल यह है कि बिहार में 15 साल लालू-राबड़ी शासन के बाद जब उनसे सत्ता फिसली, उसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर उनकी वापसी हो ही नहीं रही। 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में भी राजद का प्रदर्शन बदतर रहा। लेकिन 2015 में राजद ने सहयोगियों का नया फार्मूला ढूंढ़ा और तब से राजद विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई। 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद ने सबसे अधिक 80 सीटें जीती। राजद के कैडर वोट के भरोसे ही हाशिए पर चली गई कांग्रेस को 27 विधायक मिल गए। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को भी 71 सीटें मिली। 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद ने कांग्रेस के साथ दूसरे दलों के साथ गठबंधन किया। लेकिन सीट मिली सिर्फ कांग्रेस को। राज्य की विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी राजद पहली बार लोकसभा में कोई सीट नहीं जीत सकी।
सहयोगियों के लिए राजद का साथ फायदे का सौदा
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव को लालू यादव के नेतृत्व में राजद ने लड़ा था। राजद सबसे बड़ा दल बना और सहयोगी दलों को भी राजद की ताकत का फायदा मिला। 2024 का लोकसभा चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ा गया। इस चुनाव में इंडी गठबंधन के दलों में राजद को सबसे अधिक सीटें मिली। लेकिन सहयोगी दलों का प्रदर्शन राजद से कहीं बेहतर रहा। तीन सीटें जीतने वाली कांग्रेस ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा था। जबकि राजद ने 23 सीटों पर चुनाव लड़ा था। कांग्रेस ने हर तीन सीट में से एक सीट पर दर्ज की तो राजद को एक जीत छह सीटों पर मिली। सबसे बड़ा फायदा सीपीआईएमएल को मिला, जिसने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा और दो सीटों पर जीत भी दर्ज कर ली।
अब जब चुनाव बाद के विमर्श में पार्टियों के परफॉर्मेंस की चर्चा हो रही है। तो राजद, लालू यादव, तेजस्वी यादव को अब यह सोचना होगा कि राजद के वोट पर जब उनके सहयोगी जीत जाते हैं तो राजद गलती कहां कर रहा है। क्या सहयोगी दलों को साधने के चक्कर में राजद अपनी सीटें गंवा रहा है या फिर राजद से उम्मीदवारों के चयन में गलती हो रही है।