बक्सर के लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए सेफ सीट माना जाता रहा है। पिछले सात चुनावों में बक्सर के 7 चुनावों में से सिर्फ एक बार भाजपा के उम्मीदवार को हार मिली है। पिछले दोनों चुनाव जीतने वाले भाजपा के अश्विनी चौबे को इस बार बेटिकट कर मिथिलेश तिवारी को मैदान में उतारा गया है। लेकिन इस बार भाजपा का यह गढ़ बड़े उम्मीदवारों की एंट्री से उलझा दिख रहा है। मिथिलेश तिवारी को अगर भाजपा के कैडर और संगठन का फायदा मिल रहा है तो उन पर बाहरी होने के कारण नाराजगी भी है।
दरअसल, बक्सर का लोकसभा चुनाव कई एंगल से उलझा हुआ है। राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे और पूर्व मंत्री सुधाकर सिंह हैं। सुधाकर सिंह ने नीतीश कुमार की सरकार में रहते हुए उनसे सीधी टक्कर लेने के कारण चर्चा में खूब आए। अपनी इस लोकप्रियता को सुधाकर सिंह ने कायम रखने की भी कोशिश की है। राजद के उम्मीदवार के रूप में अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहे सुधाकर सिंह के सामने चुनौती यह है कि अपने पिता की लगातार दो हारों का बदला लें। सुधाकर सिंह को मुस्लिम, यादव और राजपूतों के साथ कुशवाहा वोट भी मिल रहा है।
बक्सर सीट पर अन्य नेताओं ने भी मुश्किल खड़ी कर दी है। आईपीएस की नौकरी छोड़कर राजनीति में एंट्री करने वाले आनंद मिश्रा ने पिछले चार साल से बक्सर में मेहनत की है। यूथ के बीच में उनकी पॉपुलैरिटी है और उनका प्रभाव ऐसा है कि असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा को बक्सर की सभा में आनंद मिश्रा के बारे में बोलना पड़ा। निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में आनंद मिश्रा की पॉपुलैरिटी का नुकसान मिथिलेश तिवारी को हो सकता है।
दूसरी ओर ददन पहलवान भी इस चुनावी मैदान में हैं। निर्दलीय ददन पहलवान सुधाकर सिंह के सामने मुश्किल खड़ी कर रहे हैं क्योंकि यादवों के वोट में अगर ददन पहलवान सेंध लगा देते हैं तो सुधाकर की मुश्किल बढ़ सकती है।