सारण में बाहुबली पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह और उनके परिवार की राजनीतिक सक्रियता लगभग चार दशकों की है। पहली बार 1985 में विधायक बने प्रभुनाथ सिंह 1990 के बाद से हमेशा किसी न किसी दल से रहे हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में ऐसा पहली बार हुआ है जब प्रभुनाथ परिवार न सत्ता के साथ है और न ही विपक्ष के साथ। उनके बेटे रणधीर सिंह ने महाराजगंज लोकसभा सीट से निर्दलीय चुनाव की तैयारी तो कर ली है। लेकिन इससे सारण के राजनीतिक समीकरण बदल गए हैं।
महाराजगंज लोकसभा : मशरक में प्रभुनाथ समर्थकों के सामने रणधीर सिंह का ऐलान, 6 मई को निर्दलीय नामांकन
दरअसल, प्रभुनाथ सिंह 1990 का चुनाव जनता दल से जीते। उसके बाद समता पार्टी फिर जदयू में प्रभुनाथ रहे। 2005 में बिहार में नीतीश सरकार बनने के वक्त प्रभुनाथ सिंह सत्ता के साथ ही रहे। लोकसभा का चुनाव बिहार में सत्ता नहीं होने के बाद भी वे जीतते ही रहे थे। लेकिन बिहार में सत्ता आते ही जब पहला लोकसभा चुनाव हुआ तो 2009 में प्रभुनाथ सिंह हार गए। इसके बाद प्रभुनाथ परिवार राजद में शिफ्ट हो गया। लेकिन अब प्रभुनाथ सिंह के बेटे ने राजद नेतृत्व को ही सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है।
छपरा के विधायक रहे रणधीर सिंह को महाराजगंज लोकसभा सीट पर 2019 में सफलता नहीं मिली। 2024 में सीटों का गणित ऐसा उलझा कि राजद ने इस सीट पर कांग्रेस को लड़ने के लिए मजबूर कर दिया। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह ने भी मौका गंवाया नहीं। उन्होंने अपने बेटे को टिकट दिलवा दिया। बगल की सारण सीट पर लालू यादव की बेटी रोहिणी आचार्य चुनाव लड़ रही हैं। अखिलेश सिंह ने सोचा होगा कि लहर महागठबंधन की चली तो आकाश भी निकल जाएंगे। लेकिन रोहिणी के लिए तो कोई बाधक नहीं बना। जबकि अखिलेश के सामने रणधीर सिंह खड़े हो गए हैं।
रणधीर सिंह खुलेआम कह रहे हैं कि कांग्रेस के पास महाराजगंज में न उम्मीदवार था और न ही संगठन है। उनके उम्मीदवार को महाराजगंज में 10 लोग भी नहीं पहचानते। तो फिर मेरा टिकट क्यों कटा इसका जवाब लालू यादव दें। महागठबंधन रणधीर सिंह की बगावत के बाद भी एकजुट दिखने का प्रयास कर रहा है। मांझी के विधायक सत्येंद्र यादव ने कहा कि रणधीर सिंह भूल रहे हैं कि उनके चेहरे की चमक महागठबंधन के वोटों की है। तो लगे हाथ रणधीर सिंह ने कह दिया कि उनकी चेहरे की मुस्कराहट किसी सिम्बल की मोहताज नहीं है।
अब बात करें चुनावी समीकरण की तो रणधीर सिंह की दावेदारी न सिर्फ आकाश प्रसाद सिंह को मुश्किल में डाल रही है, बल्कि जनार्दन सिंह सिग्रीवाल के लिए भी उतनी ही चिंता करने वाली बात है। दरअसल, रणधीर सिंह राजपूत जाति से आते हैं और सिग्रीवाल भी, जबकि आकाश प्रसाद सिंह भूमिहार हैं। ऐसे में रणधीर के पक्ष में राजपूतों ने वोट किया तो सिग्रीवाल की मुश्किल बढ़ जाएगी। दूसरी ओर प्रभुनाथ परिवार की विरासत आगे बढ़ाने की कोशिश में लगे रणधीर ने बीते 15 साल राजद में बिताए हैं और इस बार अगर राजद के अपने समर्थकों को वे अपने पक्ष में कामयाब हो जाते हैं तो आकाश प्रसाद सिंह की मुश्किल बढ़ेगी।