बिहार में लोकसभा चुनाव की सरगर्मी, दूसरे राज्यों से थोड़ी अधिक है। 2024 में होने वाले चुनावी भूकंप का केंद्र, बिहार को बनाने की कोशिश हो रही है। योद्धाओं में बिहार के वीरों को पहली पंक्ति देने का प्रयास चल रहा है। यह इसलिए भी हो रहा है क्योंकि भाजपा को उसके ही फार्मूले से मात देने का कारनामा, बिहार में ही हुआ है। महाराष्ट्र में भाजपा ने जिस फार्मूले से सत्ता हासिल की है, वो बिहार की राजनीति में पहले से होता रहा है। 2017 में इसका लाभ भाजपा को मिला था तो 2022 में राजद को सत्ता की मलाई मिली। अब भाजपा के विपक्षी दलों की कोशिश, लोकसभा चुनाव में मुकाबले को आमने सामने करने की है। इसमें बिहार थोड़ा आगे है, क्योंकि यहां लड़ाई पहले ही आमने-सामने की हो चुकी है।
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राजद को M-Y पर ही भरोसा
राजद के लिए मुस्लिम-यादव यानि M-Y वोट बैंक, विरासत की तरह है। कई चुनावों में इसका असर दिखा है। वैसे तो राजद नेतृत्व शिफ्टिंग फेज में है। यानि लालू यादव के सक्रिय रहते पावर ट्रांसफर, तेजस्वी यादव की ओर हो रहा है। तेजस्वी यादव की बातों में M-Y नहीं, A टू Z का जिक्र आता है। लेकिन जब प्रतिनिधित्व की बात आती है तो राजद का भरोसा M-Y पर ही चला जाता है। अभी जो सरकार चल रही है, उसमें आठ यादव मंत्री शामिल हैं। इनमें राजद ने सात यादव विधायकों को मंत्री बनाया है। वहीं पांच मुसलमान मंत्रियों में तीन राजद से ही हैं।
जदयू के हिस्से कुर्मी-कुशवाहा, ईबीसी
जिस तरह राजद ने यादव-मुसलमान वोट बैंक पर कंट्रोल रखने के प्रयास किए हैं, उसी तरह जदयू ने अपने खाते में कुर्मी-कुशवाहा और ईबीसी जातियों को रखा है। नीतीश कुमार की कैबिनेट के 33 मंत्रियों में से 11 मंत्री गैर-यादव ओबीसी नेता हैं। अतिपिछड़ी जातियों को भी नीतीश कुमार की कैबिनेट में जदयू ने ठीक-ठाक प्रतिनिधित्व दिया है। इनमें मदन सहनी, शीला मंडल को जगह दी गई है। नीतीश कुमार की पार्टी लव-कुश सिद्धांत यानि कुर्मी कुशवाहा के आधार वाली पार्टी मानी जाती रही है। उपेंद्र कुशवाहा के जाने की भरपाई उमेश कुशवाहा, जयंत राज जैसे नेताओं से कराने की कोशिश हो रही है।
कांग्रेस ने संभाला सवर्ण मोर्चा
वहीं कांग्रेस ने भी जातीय वोट बैंक में अपने लिए कोना तलाश लिया है। राजद और जदयू के फोकस एरिया से अलग हटते हुए, कांग्रेस ने सवर्णों वाला हिस्सा अपने साथ मिलाने की कोशिश की है। कांग्रेस ने बिहार के 38 जिलों में 39 जिलाध्यक्ष नियुक्त किए हैं। इन जिलाध्यक्षों के चयन में पूरा दांव सवर्ण नेताओं पर लगाया गया है। सबसे अधिक 11 जिलों में भूमिहार नेताओं को कांग्रेस ने जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी है। जबकि 08 ब्राह्मण, 06 राजपूत और 01 कायस्थ नेता को जिलाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है। यानि कांग्रेस ने 39 में से 26 जिलाध्यक्ष भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ जाति से बनाए हैं।