भाजपा की मोदी सरकार को हटाने के संकल्प के साथ पटना में जो कोशिश बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने शुरू की थी, बेंगलुरु में उसके अगले स्टेप पर चर्चा हुई। गठबंधन के साथी बढ़े तो जोश भी विपक्ष का हाई दिखा। नामकरण INDIA यानि Indian National Developmental Inclusive Alliance करने के बाद तो जैसे विपक्ष के पांव ही जमीन पर नहीं हैं। INDIA Vs NDA के नारों से सोशल मीडिया पटा दिख रहा है। तो दूसरी ओर बिहार के सीएम नीतीश कुमार की खामोशी के शोर ने सबको सन्न कर दिया है। दरअसल, नीतीश कुमार विपक्ष की बैठक के तुरंत बाद पटना के लिए निकल गए। प्रेस कांफ्रेंस में बोलना तो दूर दिखे भी नहीं। इसके बाद पटना एयरपोर्ट पर आए तो भी कुछ नहीं बोले। इन्हीं दोनों घटनाओं ने इस बात को हवा दे दी है कि नीतीश कुमार नाराज हैं। नीतीश कुमार के साथ लालू यादव और तेजस्वी यादव भी पटना लौट आए। तो सवाल यह उठता है कि क्या लालू भी नाराज हैं? सवाल यह भी उठेगा कि नीतीश कुमार नाराज होंगे, तो लालू किसका साथ देंगे? INDIA का या नीतीश का?
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नाराजगी की हवा क्यों बही?
विपक्षी दलों को 2024 के चुनाव के पहले एक करने का बीड़ा नीतीश कुमार ने खुद उठाया था। अलग अलग राज्यों में घूम घूम कर वे अलग अलग दलों से समर्थन मांगते भी दिखे। पहली बैठक के मेजबान भी खुद नीतीश कुमार थे। लेकिन अब जब कुनबा पहली और दूसरी बैठक के बीच लगभग दोगुना हो गया है, तो नीतीश कुमार नाराज बताए जाने लगे। सवाल उठता है कि आखिर नीतीश के नाराज होने की हवा बही क्यों? दरअसल, पटना की बैठक में नीतीश कुमार पूरी तरह मेजबान की भूमिका में थे। बैठक के बाद प्रेस कांफ्रेंस हुई, तो भी नीतीश कुमार ने सभी को बारी बारी से बोलने का मौका दिया। लेकिन बेंगलुरु की बैठक के बाद जब नीतीश कुमार प्रेस कांफ्रेंस में नहीं गए, तभी से नाराजगी की बात उठने लगी। फ्लाइट के वक्त की बात सामने आई तो लगा कि बेंगलुरु में नहीं बोले तो कोई बात नहीं, पटना एयरपोर्ट पर तो जरुर बोलेंगे। लेकिन पटना एयरपोर्ट पर भी नीतीश कुमार चुपचाप लौट गए तो नाराजगी की हवा, तूफान बन गई।
कांग्रेस ने कर लिया हाईजैक?
अब नीतीश कुमार को नाराज मान लिया जाए तो सवाल यह उठता है कि आखिर वे नाराज हैं क्यों? क्योंकि विपक्षी दलों की एकता तो उनकी इच्छा के अनुरुप ही आगे बढ़ी है। पीएम पद का वे खुद को दावेदार मानते भी नहीं हैं। तो फिर अचानक नाराज क्यों? दरअसल, इस नाराजगी का कारण कांग्रेस को बताया जा रहा है। बताया यह जा रहा है कि नीतीश कुमार ने तो विपक्ष की एकता की कोशिश की थी और लीडर चयन पर बाद में निर्णय की बात कही थी। लेकिन पटना की बैठक के बाद कांग्रेस ने नीतीश कुमार द्वारा सजाए इस महा-गठबंधन, जिसका नाम अब INDIA पड़ गया है, को हाईजैक कर लिया है। बैठक की लोकेशन पहले शिमला तय हुई थी, कांग्रेस ने उसे बदलकर बेंगलुरु कर दिया। इसके बाद बैठक में भी कांग्रेस ने नीतीश कुमार को खास तवज्जो नहीं दी, ऐसा बताया जा रहा है।
क्या चाहते थे नीतीश?
अगला सवाल यह है कि आखिरकार नीतीश कुमार चाहते क्या थे, जो उन्हें पहले पटना और फिर बेंगलुरु की बैठक से उन्हें नहीं मिला। इसका जवाब गठबंधन का नेता या समन्वयक है। बिहार के राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा आम है कि नीतीश कुमार विपक्षी दलों के गठबंधन के नेता या समन्वयक बनना चाहते थे। इसके पीछे का कारण यह बताया जाता है कि चूंकि यह गठबंधन अभी पीएम कैंडिडेट फाइनल नहीं कर रहा है। ऐसे में संभावना यह है कि अगर गठबंधन की जीत होती है तो पीएम कैंडिडेट के नाम चयन में समन्वयक की भूमिका अहम हो सकती है। नीतीश कुमार वही अहम भूमिका निभाना चाह रहे थे। लेकिन बैठक में 11 सदस्यीय समन्यवय समिति बनाने की बात ने नीतीश कुमार की चाहत को अधूरा कर दिया।
लालू देंगे नीतीश का साथ?
विपक्षी दलों की बैठक के बाद अगर नीतीश वाकई नाराज हो गए तो लालू और तेजस्वी किसका साथ देंगे, यह अहम सवाल है। बिहार की राजनीति के जानकार बताते हैं कि लालू और तेजस्वी मौजूदा परिस्थितियों में नीतीश कुमार का ही साथ देंगे। इसकी कई वजह हैं।
- पहली वजह ये है कि नीतीश कुमार अगर बिहार की राजनीति छोड़ दिल्ली की राजनीति में आगे बढ़ते हैं, तो तेजस्वी यादव के सीएम बनने का रास्ता साफ होता। लेकिन कांग्रेस ने नीतीश कुमार को दिल्ली के लिए कन्फर्म टिकट नहीं दिया है। ऐसे में नीतीश कुमार को भी नाराज कर लालू-तेजस्वी अभी बिहार की सत्ता नहीं छोड़ना चाहेंगे।
- लालू-तेजस्वी की पार्टी राजद के लिए पिछला लोकसभा चुनाव बुरे सपने से कम नहीं था। सालों तक बिहार की सत्ता संभालने वाले राजद का कोई उम्मीदवार 2019 के लोकसभा चुनाव में नहीं जीता। अभी समीकरण गड़बड़ हुए तो फिर वही स्थिति न आ जाए, इसलिए भी अभी लालू-तेजस्वी के लिए नीतीश का साथ देना मजबूरी है।