बिहार में जो राजनीतिक हालात हैं, उसमें एक तरह से सभी ने यह मान लिया है कि नीतीश कुमार ने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंध का साथ छोड़ कर भाजपा का साथ कबूल कर लिया है। यह बात तीन दिनों से चल रही है और संकेत भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद गठबंधन का खुलासा नहीं हो रहा है। भाजपा नेताओं के सुर नीतीश कुमार और जदयू के लिए बदल चुके हैं। भाजपा-जदयू गठबंधन होने के बाद सरकार बनाने का फार्मूला भी तैयार माना जा रहा है। अब सवाल यही है कि अब कहां मामला फंसा है कि बिहार की राजनीतिक अस्थिरता खत्म नहीं हो रही है। दरअसल, पहले तो यह माना जा रहा था कि भाजपा नीतीश को सीएम मानने के लिए तैयार नहीं होगी। लेकिन ऐसा नहीं है। क्योंकि यह मुद्दा लगभग खत्म माना जा रहा है। लेकिन गठबंधन का ऐलान नहीं होने के पीछे का कारण अलग है।
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गठबंधन में नीतीश को सीएम मानने के लिए तैयार भाजपा?
दरअसल, भाजपा के नेताओं के सुर ऐसे रहे थे कि भले ही नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी हो जाए। लेकिन अब वे बिहार के सीएम नहीं रह सकेंगे। चर्चा यहां तक थी कि भाजपा किसी और को सीएम बनाएगी, जो भाजपा का ही होगा। लेकिन बताया जा रहा है कि नीतीश कुमार इसके लिए तैयार नहीं हैं। साथ ही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अब नीतीश की यह शर्त मान भी ली है कि वे सीएम आगे बने रहेंगे। कम से कम लोकसभा चुनाव तक तो भाजपा इसमें छेड़खानी नहीं करेगी।
लेकिन नीतीश कुमार और भाजपा नेतृत्व के बीच गठबंधन का मामला लोकसभा चुनाव की सीटों पर फंस गया है। चर्चा है कि नीतीश कुमार बिहार में एनडीए सरकार लाने के लिए उतनी ही लोकसभा की सीटें चाहते हैं कि जितनी उन्हें 2019 में मिली थी। यानि जदयू 17 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। लेकिन भाजपा नेतृत्व इसके लिए तैयार नहीं हो रहा है। भाजपा नेतृत्व की कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा सीटों पर भाजपा ही लड़े ताकि चुनाव के बाद किसी तरह की पलटा-पलटी की समस्या खड़ी होने की आशंका न हो।
भाजपा दे रही 7 से 8 सीटें!
चर्चा है कि भाजपा ने नीतीश कुमार को उनके विधायकों की संख्या के अनुपात में लोकसभा सीटें देने का प्रस्ताव दिया है। ऐसे में 45 सीटों वाली जदयू के हिस्से 7 से 8 सीटें आ रही हैं। यही नीतीश कुमार और भाजपा के बीच गठबंधन का पेंच है, जो अब तक नहीं सुलझा है। इस बात का इशारा एनडीए के सहयोगी चिराग पासवान के उस बयान से भी समझा जा सकता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि भाजपा से उनकी हर मुद्दे पर बात हुई है और उनके हितों का ख्याल भी रखा जा रहा है। जाहिर तौर पर एनडीए में नीतीश कुमार के शामिल होने से एनडीए के दलों को उनके हिस्से की सीटें कम होने का डर है। यही कारण है कि भाजपा नीतीश कुमार के साथ अपने सहयोगी दलों से भी लोकसभा सीटों की संख्या पर बात कर रही है।