बिहार का मौसम जितना गर्म है। राजनीतिक पारा उससे कहीं उपर जा चुका है। सीएम नीतीश कुमार के पिछले कुछ दिनों के एक्टिविटीज को देखें तो वे किस नाव पर सवार हैं, यह समझना मुश्किल है। नीतीश कुमार के मन में क्या चल रहा है ये कोई समझ नहीं सकता। क्योंकि सत्ता में तो वे भाजपा के साथ साझीदार हैं। योगी आदित्यनाथ के शपथ ग्रहण में शान से पहुंचते हैं। गृह मंत्री अमित शाह बिहार आते हैं तो नीतीश उनकी अगुवानी के लिए पहुंचते हैं।
सीएम नीतीश बीजेपी को मौका नहीं देना चाहते
कुल मिलाकर नीतीश भाजपा को कोई ऐसा मौका नहीं देना चाहते कि उन्हें भाजपा से दूर जाता देखा जाए। जबकि दूसरे हीं पल नीतीश कुमार राजद के इफ्तार में पैदल चलते पहुंच जाते हैं। नीतीश का सीएम आवास के पीछे ही राबड़ी आवास है। इफ्तार में जाने का निमंत्रण मिलते ही नीतीश पिछला दरवाजा खुलवाकर पैदल ही राबड़ी आवास पहुंच जाते हैं। खूब हंसी-ठिठोली करते हैं। तेजस्वी भी उनकी अगुवानी के लिए पलकें बिछाए दिखते हैं। तेजप्रताप भी कई ऐसी बातें कर जाते हैं कि राज्य का राजनीतिक समीकरण ही बदलने लगता है।
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इशारा नीतीश
वहीं नीतीश की तीसरी नाव कांग्रेस में चल रही है। कांग्रेस, भाजपा की तो परंपरागत राजनीतिक दुश्मन है ही, राजद से भी कांग्रेस के बेहतर रिश्ते नहीं है। कांग्रेस में नीतीश के करीबी प्रशांत किशोर अपनी पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन से यह समझाने में लगे हैं कि कांग्रेस को सत्ता चाहिए तो गैर गांधी परिवार के व्यक्ति को प्रमोट करना होगा। प्रशांत का इशारा नीतीश हैं या कोई और यह खुल कर तो सामने आया नहीं है, लेकिन नीतीश इतनी नावों पर सवार हो चुके हैं कि वे किस तरफ निकलेंगे, कहना मुश्किल है।
नीतीश कुमार तीन नावों पर सवार होकर कहां जाना चाहते
अब हम आपको बता रहे हैं कि नीतीश कुमार इन तीन नावों पर सवार होकर कहां जाना चाहते हैं। दरअसल, नीतीश कुमार का सीधा निशाना 2024 का लोकसभा चुनाव है। इसमें वे अपनी उस हसरत को पूरा करने का मौका ढूंढ रहे हैं जिसमें उन्हें नरेंद्र मोदी के सामने संपूर्ण विपक्ष का पीएम उम्मीदवार बना दिया जाए। यह कांग्रेस की मंजूरी के बिना संभव नहीं है और इसी क्रम में नीतीश के लिए कांग्रेस में बैटिंग प्रशांत किशोर कर रहे हैं।
सीएम नीतीश की चाहत दिल्ली कुर्सी
वहीं राजद का समर्थन भी जरुरी है क्योंकि बिहार नीतीश तब तक छोड़ना नहीं चाहते जब तक दिल्ली में उनकी कुर्सी चारों पाए पर टिक न जाए। ये दोनों दांव फेल हुए तो भाजपा का साथ तो है ही। बहरहाल, नीतीश कुमार के बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि वे जो कहते हैं वो करें न करें, जो नहीं कहते वो डेफेनेटली करते हैं।