लोकसभा चुनाव में अब तो अधिकतम 9 महीने की देर है। इस बीच बिहार में राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में 80 फीसदी सीटें जीत लेने वाले भाजपा-जदयू का कांफिडेंस तो हाई दिख रहा है। असली परेशानी राजद को है। दरअसल, पिछली बार साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाले भाजपा और जदयू में अलगाव हो चुका है। जदयू अब राजद के साथ है। चुनाव के दौरान इसका असर तो बाद में पता चलेगा। लेकिन चुनाव के पहले टिकट बंटवारा करना राजद के लिए बड़ी मुश्किल है। दूसरी ओर भाजपा के पास तो शेयरिंग के लिए वैसे दल हैं ही नहीं जो उससे अधिक सीटों का दावा करें। दूसरी ओर JDU ने पिछले चुनाव में 17 में से 16 सीटें जीती थी, तो उसका कांफिडेंस अलग ही लेवल पर है। अब परेशानी राजद के साथ ये है कि वो अपने वोटबैंक और सीटों को लेकर कहां तक समझौता करेगा।
बिहार में महागठबंधन बन गया टाइटेनिक?
भाजपा के पास खुला मैदान
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बिहार की 17 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। सभी सीटें जीती भी थी। तब भाजपा ने पांच वो सीटें छोड़ दी थी, जहां से उसने 2014 के चुनाव में जीत मिली थी। सीटें जदयू के खाते में गई थी, जिसका खामियाजा भाजपा को लंबे वक्त तक उठाना पड़ा है। अब 2024 के चुनाव में एक बार फिर भाजपा के पास अपने अधिक उम्मीदवार उतारने का मौका है। क्योंकि भाजपा के साथ जो भी दल हैं, उन्हें बहुत सीटें नहीं चाहिए। चिराग पासवान और पशुपति पारस गुट को मिलाने के बाद भी उपेंद्र कुशवाहा की RLJD और जीतन राम मांझी की HAM का एडजस्टमेंट 10 सीटों के भीतर संभव दिख रहा है। हालांकि आधिकारिक घोषणा अभी नहीं हुई है लेकिन संभावना यही है कि भाजपा 2024 में 30 या उससे अधिक सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। 2014 में भाजपा सबसे अधिक 31 सीटों पर चुनाव लड़ी थी।
जदयू की ख्वाहिश के साथ परसेप्शन का सवाल
सीटों पर मारामारी इस बार एनडीए से अधिक महागठबंधन में दिखने के आसार हैं। क्योंकि तीन भारी दल इधर ही हैं। जदयू ने 2019 के चुनाव में भाजपा के साथ रहते हुए 17 में से 16 सीटें जीती थी। इसलिए निश्चित तौर पर जदयू कम से कम राजद के बराबर सीट चाहेगी। इसके अलावा अगर नीतीश कुमार को पीएम पद के लिए आगे किया जाता है तो राजद के पास जदयू को अधिक सीटें देने का दबाव बढ़ जाएगा क्योंकि पीएम कैंडिडेट की पार्टी अगर कम सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो चुनाव में परसेप्शन ठीक नहीं जाएगा। ऐसे में जदयू को अधिक सीटें मिलने की चर्चा है, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर बिहार से साफ मैसेज जाए कि नीतीश के नेतृत्व को तेजस्वी मानने को तैयार हैं।
राजद को करना पड़ेगा समझौता?
महागठबंधन में राजद ऐसा दल है, जिसके पास पिछले लोकसभा चुनाव में कोई सीट नहीं आई थी। इसके बावजूद परंपरागत वोट बैंक, नीतीश कुमार की जदयू के समर्थन को देखते हुए अगले चुनाव में राजद से बेहतर करने की उम्मीद है। लेकिन सीटों के मामले में जदयू से अगर राजद पिछड़ेगा, तो वहां असंतोष हो सकता है। इसके अलावा राजद के पास वैसे उम्मीदवारों की भी कमी है, जिनके पास पहले से चुनाव जीतने का अनुभव रहा है। राजद की मौजूदा स्थिति में जगदानंद सिंह, जय प्रकाश नारायण यादव, शैलेश मंडल और सरफराज आलम ही ऐसे नेता हैं, जो अभी राजद में हैं और 2009 या उससे पहले लोकसभा चुनाव जीते हुए हैं। ऐसे में उम्मीदवारों के चयन के साथ सीटों के बंटवारे में भी राजद के सामने चुनौतियां भाजपा और जदयू के मुकाबले अधिक रहेंगी।