केंद्रीय इस्पात मंत्री आरसीपी सिंह (रामचंद्र प्रसाद सिंह) आज सोमवार को 12 बजकर 15 मिनट पर अपने आवास सात स्टैंड रोड पत्रकारों से बात की। पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि संगठन की ताकत हमारी ताकत है। नीतीश कुमार के साथ मेरा 25 साल पुराना संबंध है। मुझे जो भी जिम्मेवारी मिली मैंने इमानदारी से निभाया है। नीतीश कुमार के आदेश पर ही निर्णय लेता हूं। मैंने संगठन को बूथ तक पहुंचाया है। 12 साल तक मैं राज्यसभा में रहा हूं। अब मैं दिल्ली जाउंगा, बात करूँगा और संगठन पर ध्यान दूंगा। साथ ही उन्होंने कहा कि मंत्री पद देना या ना देना पीएम मोदी के हाथ में है। आरसीपी सिंह ने आगे कहा कि मैंने हमेशा पार्टी के हित के लिए काम किया है। अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन किया है। एक सवाल के जवाब में कि नीतीश नाराज है क्या आपसे जवाब में आरसीपी सिंह ने कहा कि हमसे नाराज क्यों होगे, मैं कोई ऐसा काम नही करता हूं जिससे कोई नाराज हो। मंत्री पद पर दिल्ली जाकर बात करूंगा।
सीएम के साथ 25 साल का रिश्ता
नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह का जुड़ाव पुराना है। पहली बार केंद्रीय मंत्री नीतीश बने थे तो उनकी करीबी आरसीपी सिंह ने बढ़नी शुरू हुई। यह दोस्ती इतनी आगे बढ़ी कि RCP सिंह ने वक्त से पहले रिटायरमेंट ले लिया और जुड़ गए नीतीश कुमार की पार्टी से। आगे चलकर पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत भी आरसीपी को मिली। बाद में आरसीपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर भी JDU की कमान संभाले रहे।
2010 में पहली बार गए राज्यसभा
राजनीति से भले ही सीधा नाता न हो, लेकिन संसद तक पहुंचने में आरसीपी को ज्यादा वक्त नहीं लगा। 2010 में वे राज्यसभा पहुंच गए। तब से वे राज्यसभा में टिके हुए हैं। भाजपा से अलगाव और 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद आरसीपी अपने पार्टी का मुखर चेहरा बनने का प्रयास करते रहे। लेकिन उनकी पार्टी को इसका लाभ चुनावों में नहीं मिला। 2014 में लोकसभा चुनाव JDU बुरी तरह हारी। पहली बार अकेले चुनाव लड़ रही JDU के पास लोकसभा चुनाव में सिर्फ निराशा हाथ आई। 2014 में भाजपा की अगुवाई में JDU के बिना NDA ने 30 सीटों पर कब्जा जमा लिया था।
2015 में बिहार में सक्रिय
2014 की हार के बाद नीतीश कुमार ने तो कुर्सी छोड़ दी। लेकिन आरसीपी ने अपना कद बढ़ाने की शुरुआत उन्हीं दिनों की। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में RJD के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ी JDU को RJD से कम सीटें मिली। यानि सरकार तो बनी नीतीश के नेतृत्व में लेकिन उनकी पार्टी RJD के सामने कमजोर ही रही। इस चुनाव के प्रबंधन में RCP कहीं आगे थे। लेकिन उनका पूरा प्रबंधन जदयू को बड़ा दिखाने में फेल साबित हुआ।