[Team insider] आजसू सूप्रीमो सुदेश महतो ने राज्य सरकार से अपने स्तर पर जातीय जनगणना कराने की मांग की है। यह राज्य की जरूरत बतायी है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के बीच अलग-अलग माध्यमों से यह मांग लगातार उठती भी रही है। इसे लेकर उन्होंने सोमवार को सीएम हेमंत सोरेन को एक चिट्ठी भी लिखी। केंद्र सरकार ने नीतिगत मामले के तौर पर पिछले साल ही फैसला किया है कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अलावा कोई जातीय जनगणना नहीं होगी।
जातीय आबादी के दावे के साथ सालों से उठती रही है
सुदेश महतो ने कहा कि हर आदमी की सामाजिक, आर्थिक स्थिति का आंकलन जनगणना में होता है। जनगणना, नीतियां बनाने का एक प्रमुख आधार है और जातीय आंकड़े आरक्षण की सीमाएं तय करने में भी अहम भूमिका निभाते हैं। झारखंड में पिछड़ा वर्ग का आरक्षण बढ़ाने की बहुप्रतीक्षित मांग जातीय आबादी के दावे के साथ सालों से उठती रही हैं।
राज्य में अलग-अलग जातियों की है बहुलता
झारखंड में जातीय जनगणना विकास और कल्याण कार्यक्रमों का खाका खींचने में भी महत्वपूर्ण फैक्टर साबित हो सकता है। दरअसल इस राज्य के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग जातियों की बहुलता है। और उनकी जरूरतें, आकांक्षाएं अलग हैं। जनगणना जातीय आधारित होने पर वास्तविक जरूरतमंदों को सरकारी योजना और कल्याणकारी कार्यक्रमों का लाभ भी ज्यादा मिल सकता है।
जातीय जनगणना कराने से हक अधिकार भी सुनिश्चित किया जा सकेगा
आजसू सूप्रीमो ने कहा कि हेमंत सोरेन के नेतृत्व में चल रही गठबंधन की सरकार पिछड़े, दलितों, आदिवासियों के हितों को लेकर अकसर प्रतिबद्धता जाहिर करती रही है और चुनाव से पहले सत्तारूढ़ दलों ने रोजगार, नौकरी, आरक्षण को लेकर कई वादे भी किए हैं। जातीय जनगणना कराने में अगर सरकार दिलचस्पी दिखाए, तो उनका हक अधिकार भी सुनिश्चित किया जा सकेगा। जातीय जनगणना को लेकर कई तर्क दिए जाते हैं और इसके ना कराने के पीछे अगर-मगर देखा-समझा जाता रहा है। लेकिन मैं समझता हूं कि जातीय जनगणना होने से तमाम आशंकाएं निर्मूल साबित होंगी। झारखंड में जातीय जनगणना वक्त और सभी तबके के समेकित विकास तथा हिस्सेदारी के लिए मौजूदा जरूरत है। साथ ही यह सामाजिक-राजनीतिक बहस के केंद्र में भी है।