बिहार में बढ़ते अपराध को लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने शनिवार को आला पुलिस अधिकारियों के साथ हाईलेवल मीटिंग की। गृह सचिव, एडीजी के साथ गृह विभाग के आला अधिकारी मीटिंग में मौजूद थे। लेकिन इस समीक्षा बैठक को लेकर मुख्य विपक्षी दल राजद ने निशाना साधा है। राजद ने इसे नौटंकी और औपचारिकता करार दिया है। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य ने भी समीक्षा बैठक को लेकर सवाल उठाया है। उन्होंने एक्स पर एक लंबा चौड़ा पोस्ट लिखा है।
रोहिणी आचार्य ने एक्स पर लिखा
लगभग एक महीने पहले भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पूरी व बुरी तरह से बिगड़ चुकी कानून-व्यवस्था के मद्देनजर एक समीक्षा बैठक की थी, नतीजा सिफर ही रहा। कल एक बार फिर मुख्यमंत्री जी इसी संदर्भ में समीक्षा बैठक और अपनी चिंता जाहिर करते दिखे। प्रतीक्षा रहेगी कि नतीजा क्या निकल कर आता है। वैसे मुख्यमंत्री जी के उन्नीस सालों के कार्यकाल को देखा जाए तो भिन्न समस्याओं व मुद्दों से जुड़ी उनके द्वारा की गयी समीक्षा बैठकों की लिस्ट अंतहीन है। ज्यादातर समीक्षा बैठकों से अब तक कुछ सार्थक हासिल नहीं हुआ है और इससे ही स्पष्ट होता है कि महज खानापूर्ति व दिखाने के लिए की जाती हैं ऐसी बैठकें।
पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी कानून-व्यवस्था वर्त्तमान बिहार की सबसे बड़ी समस्या है, चिंताजनक हालात हैं, सत्ता संरक्षित अपराधियों के सामने पुलिस-प्रशासन बेबस और लाचार है, बेलगाम अपराध हो रहे हैं, प्रदेश की राजधानी पटना तक महफूज़ नहीं है, दर्जनों आपराधिक घटनाएं रोज घट रही हैं राजधानी व राजधानी से सटे इलाकों में, प्रदेश के बाकी हिस्सों की स्थिति तो और भी ज्यादा भयावह है, अखबारों के पन्ने पटे पड़े रहते हैं अपराध की खबरों से, साफ़ पता चलता है कई आम से लेकर खास तक कहीं कोई महफूज़ नहीं है।
कहने को तो कानून-व्यवस्था को दुरुस्त किए जाने की कवायद में पुलिस प्रमुख, आईजी-डीआईजी से लेकर जिलों के एसपी, डीएसपी व् थानेदार तक बदले जा चुके हैं, फिर भी अंतहीन आपराधिक घटनाओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अपराधियों-सरगनाओं का मनोबल ऊंचा है और सत्तापक्ष के द्वारा माफिया सरगनाओं-अपराधियों को मिलती तरजीह की वजह से प्रशासन व पुलिस बल का मनोबल गिरा हुआ दिखता है।
तेजस्वी यादव ने CM नीतीश की समीक्षा बैठक पर उठाया सवाल… कहा- न DGP और न ADG ही शामिल हुए
अपराध के ताने-बाने में अपराधी-सरगना का ‘सरदार’ कौन है ? इसी सवाल का जवाब ढूंढने के प्रयास में पुलिस-प्रशासन के हाथ बंध जाते हैं और जवाब मिलते ही कार्रवाई की दशा व् दिशा दोनों भटक जाती है। बढ़ते अपराध के मामलों, बद से बदतर होती कानून-व्यवस्था पर उठने वाले सवालों, इस पर जाहिर की जाने वाली वाजिब चिंता पर भी सरकार में शामिल लोग और सत्ताधारी जमात से जुड़े लोग कार्रवाई करने की बजाए सिर्फ और सिर्फ अनर्गल बयानबाजी करते हैं, जिसका बेजा फायदा अपराधी जम कर उठाते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो “जब सैयां भये कोतवाल तो डर काहे का” वाली कहावत चरितार्थ होती है बिहार में।