बिहार में भाजपा का सफर शून्य से शुरू हुआ है और शिखर तक पहुंचा है। भाजपा की शुरुआत धीमी रही थी। दो चुनावों तक तो भाजपा बिहार से एक-एक सीट के लिए तरसी लेकिन आज की तारीख में स्थिति बदल चुकी है। अपने बूते केंद्र में लगातार दो बार सरकार बना चुकी भाजपा को आने वाले लोकसभा चुनाव में बिहार से उम्मीदें कई हैं। इसका बड़ा कारण यह है कि पिछले दो चुनावों में बिहार ने भाजपा की झोली सीटों से भर दी है। इसी जुगत में भाजपा ने डिफेंसिव नहीं अटैकिंग रुख अपनाया है। बिहार में भाजपा की जिम्मेदारी उस सम्राट चौधरी को दी गई है, जो कभी लालू के साथ थे तो कभी नीतीश के साथ। लेकिन आज इन दोनों का इनसे ज्यादा खुलकर विरोध शायद ही कोई नेता कर पाता है। लेकिन सम्राट के लालू-नीतीश विरोध के सुर चाहे जितने उंचे हों, आने वाले चुनाव में उनका सामना उस रिकॉर्ड से है, जो अकाट्य है।
पिछले चुनाव में भाजपा ने जीती हर सीट
लोकसभा चुनाव 2019 में भजापा ने हर वो सीट जीती, जिस पर उसने चुनाव लड़ा। कुल 17 सीटों पर चुनाव लड़कर भाजपा ने सौ फीसदी जीत का जो रिकॉर्ड बनाया, उसे तोड़ पाना एक बड़ी चुनौती है। जब वह रिकॉर्ड बना था तब भाजपा के बिहार में प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय थे। नित्यानंद को टीम अमित शाह का हिस्सा माना जाता है। बिहार में शानदार प्रदर्शन का फल भी उन्हें मिला और वे सीधे केंद्र में गृह राज्य मंत्री बन गए। गृह मंत्रालय में एंट्री पाकर वे संगठन के साथ सरकार में भी अमित शाह के करीब आ गए। सम्राट चौधरी को अगर भाजपा में आगे बढ़ना है तो 2024 में उन्हें अमित शाह के खासमखास के रिकॉर्ड की बराबरी करनी होगी।
सम्राट के लिए चुनौतियों के साथ सुविधा भी
नित्यानंद राय के नेतृत्व में बिहार भाजपा 2019 में 100 फीसदी अपनी सीटें जीतने में कामयाब जरुर रही थी लेकिन यह भी सच है कि भाजपा कम सीटों पर ही चुनाव लड़ी थी। 17 सीटों पर लड़ी भाजपा को सभी सीटें जीतने के बाद भी 2014 के मुकाबले पांच सीटों का नुकसान हुआ था। 2014 में भाजपा ने 31 सीटों पर चुनाव लड़कर 22 सीटें जीती थी। 2024 में भी कमोबेश यही स्थिति रहेगी। उम्मीद यही है कि भाजपा कम से कम 30 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। ऐसे में सम्राट चौधरी की चुनौती ये है कि वो 22 सीटों के रिकॉर्ड को पार कर के दिखाएं।