उद्धव ठाकरे को आज सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तरफ से जो टिप्पणी की गई है वो उद्धव ठाकरे के पक्ष में जाती हुई दिख रही है। शिवसेना (उद्धव गुट) और शिवशेना(शिंदे गुट) के बीच चल रहे सियासी खींचतान पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। जिससे महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार पर छाए संकट के बादल छंट गए हैं। कोर्ट ने कहा कि उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में बहाल नहीं किया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।लेकिन इसके साथ ही कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल के फैसले पर भी सवाल उठाया।
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पांच सदस्यीय पीठ ने सुनाया फैसला
सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने आज फैसला सुनाया है। मामले को सात सदस्यीय पीठ को सौंप दिया। CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ जिसमें जस्टिस एमआर शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल हैं उन्होंने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट के फैसले को गलत बताया। कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को सिर्फ पार्टी व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए।
विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर भी सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिवसेना(शिंदे गुट) के भरत गोगावाले को शिवसेना पार्टी का सचेतक नियुक्त करने का विधानसभा अध्यक्ष का फैसला गैरकानूनी था। विधानसभा अध्यक्ष ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि सुनील प्रभु या भरत गोगावाले में से राजनीतिक दल का अधिकृत सचेतक कौन है। पार्टी के अंदुरनी मामले में फ्लोर टेस्ट करना गैरकानूनी है।
राज्यपाल की भूमिका पर सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को केवल राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त सचेतक को मान्यता देनी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल ने जिस प्रस्ताव पर भरोसा किया उसमें यह संकेत नहीं था कि विधायक समर्थन वापस लेना चाहते हैं, उसमें सदन में शक्ति परीक्षण कराने के लिए भी कोई बात नहीं थी। ऐसे में राज्यपाल की भूमिका सवालों के घेरे में आ जाती है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में आगे की सुनवाई कोर्ट की सात सदस्यीय पीठ करेगी।