बिहार की मौजूदा 40 लोकसभा सीटों में से 27 सीटों पर भाजपा ने कभी न कभी जीत दर्ज की है। लेकिन 13 सीटों से कोई भाजपा नेता संसद नहीं पहुंचा है। हालांकि इसमें से 10 सीटें ऐसी रही हैं, जिनपर भाजपा ने कभी कोई उम्मीदवार उतारा ही नहीं है। इन्हीं 10 सीटों में से एक है सीतामढ़ी लोकसभा सीट। यहां अभी तक आजादी के बाद से 16 चुनाव हुए हैं। लेकिन भाजपा के सिम्बल पर कोई उम्मीदवार सीतामढ़ी लोकसभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में नहीं उतरा। हालांकि यह बात अलग है कि सीतामढ़ी के मौजूदा सांसद सुनील कुमार पिंटू एक वक्त में भाजपा के ही विधायक थे और भाजपा कोटे से ही नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार की एनडीए सरकार में पर्यटन मंत्री थे। लेकिन 2019 में कुछ ऐसा हुआ कि सुनील कुमार पिंटू जदयू के टिकट पर चुनाव लड़े और सांसद बने।
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तीन चुनावों में भाजपा के सहयोगी ही जीते
सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर आजादी के बाद से अब तक कुल 16 चुनाव हुए हैं। इसमें सबसे अधिक पांच बार इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा रहा है। कांग्रेस के उम्मीदवार सीतामढ़ी सीट पर 1957 से 1984 के बीच 5 बार जीते हैं। जबकि राजद और जदयू के उम्मीदवारों के खाते में 2-2 बार यह सीट गई है। पिछले तीन चुनावों में उसी उम्मीदवार को जीत मिली है, जिसे भाजपा का समर्थन मिला है। तीन चुनावों में दो बार जदयू के उम्मीदवार जीते हैं। लेकिन 2014 में जदयू ने जब भाजपा से अलग होकर चुनाव लड़ा था तो भाजपा की सहयोगी पार्टी रालोसपा के उम्मीदवार रामकुमार शर्मा को इस सीट से जीत मिली थी।
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जेबी कृपलानी थे पहले सांसद
बिहार की सीतामढ़ी लोकसभा सीट कई मायनों में खास रही है। यहां के पहले सांसद जेबी कृपलानी थे। जेबी कृपलानी उस वक्त भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष थे, जब देश आजाद हुआ था। जब अंतरिम सरकार में 1946 में अध्यक्ष पद के लिये कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार पटेल के बाद सबसे अधिक मत जेबी कृपलानी को ही मिले थे। कृपलानी के बारे में चर्चा है कि उन्हें न पंडित नेहरु पसंद करते थे और न ही सरदार पटेल। इसके बावजूद वे कांग्रेस के अध्यक्ष बने। बाद के दिनों मतभेद इतने गहराए कि 1951 में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई। इसी दल का विलय प्रजा समाजवादी पार्टी में हुआ, जिससे जेबी कृपलानी ने 1957 में सीतामढ़ी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता भी।
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विधानसभा में भाजपा का पलड़ा भारी
मौजूदा स्थिति में सीतामढ़ी लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले छह विधानसभा सीटों में से तीन में भाजपा के विधायक हैं। वैसे तो 2020 में जिस दलीय स्थिति में चुनाव हुआ था, उसके मुताबिक तो एनडीए ने पांच सीटें जीती थी। लेकिन चूंकि अब जदयू महागठबंधन में है, इसलिए उसके दो और राजद के एक विधायक को जोड़कर महागठबंधन के पास भी तीन विधायक हैं। वहीं लोकसभा चुनाव की बात करें तो राजद के लिए यह सीट उत्साहजनक नहीं रही है। राजद के सिम्बल पर इस सीट से सीताराम यादव ने 1998 और 2004 में जीत दर्ज की थी। इसके बाद 2009 में जदयू के अर्जुन राय इस सीट से सांसद बने। 2014 के चुनाव में सीताराम यादव ने राजद से चुनाव लड़ा, हार गए। 2009 में जीतने वाले जदयू के अर्जुन राय 2014 में तीसरे स्थान पर रहे थे। 2019 में अर्जुन राय ने राजद से चुनाव लड़ा लेकिन हार ही मिली।
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राजद-जदयू मिलकर भी एनडीए से पीछे?
वैसे तो हर चुनाव की अलग कहानी होती है लेकिन सीट के इतिहास का भी अपना महत्व होता है। सीतामढ़ी सीट पर 2024 में क्या होगा, यह तो आगे आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इतिहास में हुए चुनाव बताते हैं कि राजद और जदयू मिलकर भी एनडीए के उम्मीदवार से कहीं पीछे हैं। पहली 2014 में त्रिकोणीय मुकाबला हुआ था। इसमें एनडीए की ओर से रालोसपा के राम कुमार शर्मा ने चुनाव लड़ा था। जीते भी राम कुमार शर्मा ही थे। तब उन्हें 4,11,265 वोट मिले। यानि कुल मत का 45 फीसदी वोट एनडीए को ही मिला था। जबकि अलग अलग लड़े राजद और जदय के उम्मीदवारों को मिले वोट जोड़ देने पर भी 40 फीसदी होता है। उस चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे राजद के पूर्व सांसद सीताराम यादव को 2,63,300 वोट मिले थे। जबकि तीसरे नंबर पर रहे जदयू के पूर्व सांसद अर्जुन राय को 97,188 वोट मिले। दोनों के वोट जोड़ देते हैं तो भी पहली बार चुनाव जीतकर सांसद बने राम कुमार शर्मा को दोनों के मुकाबले लगभग 51 हजार अधिक वोट मिले थे।
वहीं 2019 में तो एनडीए उम्मीदवार रहे भाजपा के पूर्व नेता और जदयू के नए नेता सुनील कुमार पिंटू ने तो सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। उन्हें कुल 5,67,745 वोट मिले जो कुल मतों का 54.65 फीसदी था। दूसरे नंबर पर रहे राजद के अर्जुन राय 3,17,206 वोट हासिल कर सके जो कुल मतदान का 30.53 फीसदी था। इसके अलावा किसी अन्य उम्मीदवार को 25 हजार वोट भी नहीं मिले।