बिहार के पूर्व कृषि मंत्री और आरजेडी विधायक सुधाकर सिंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। इस बार उन्होंने यूपीएससी रिजल्ट के बहाने बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोली है। सुधाकर सिंह ने ट्वीट कर बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया है। सुधाकर सिंह ने कहा कि बिहार एक मात्र ऐसा राज्य है, जहां तीन साल का स्नातक चार से पांच साल में और दो साल का स्नातकोत्तर तीन से चार साल में पूरा किया जाता है। विलंबित सत्र की वजह से हर साल न्यूनतम 15 लाख छात्र प्रभावित होते हैं और यह समस्या दशकों से है। परिणामस्वरूप, बिहार के बच्चे उच्च शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में पलायन कर जाते हैं।
UPSC में सफलता बिहार की शिक्षा-व्यवस्था का पैमाना नहीं
आरजेडी नेता ने ट्वीट कर लिखा कि हर साल की भांति इस साल भी बिहार के छात्र-छात्राओं का संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में विपरीत परिस्थितियों में अभूतपूर्व प्रदर्शन रहा, इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। परन्तु, क्या संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में बिहार के छात्र-छात्राओं की सफलता, बिहार की शिक्षा व्यवस्था को मापने का पैमाना हो सकता है? जवाब है नहीं।’ बिहार राज्य की करीब 32 फीसदी आबादी 16-17 के आयु वर्ग की है और इसका सिर्फ 44.07 फीसदी हिस्सा ही माध्यमिक से उच्च माध्यमिक शिक्षा की तरफ जाता है। वहीं प्राथमिक से माध्यमिक में स्थानांतरित होने वाले बच्चों का प्रतिशत 84.64 है। बिहार की बहुत बड़ी आबादी बिना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के श्रम बल में तब्दील हो रही है। इसको अगर संक्षेप में बोला जाए तो बिहार मजदूर पैदा कर रहा है।
प्रतिभाशाली छात्र वापस बिहार नहीं लौटते
सुधाकर सिंह ने कहा कि राज्य से एक बार बाहर निकल जाने पर प्रतिभाशाली छात्र वापस बिहार नहीं के बराबर लौटते हैं, जिसका खामियाजा राज्य के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है. राज्य को चलाने के लिए विभिन्न तरीके के कार्यों के लिए स्किल्ड एवं कमिटेड लोगो की जरूरत होती है, लेकिन उस तरह के प्रशिक्षित मानव संसाधन की उपलब्धता नहीं होने से स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की भारी कमी है। इसका खामियाजा यह है कि जितना प्रशिक्षित लोगों की आवश्यकता है उतना लोग उपलब्ध नहीं है।