जातीय गणना को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होने वाली है। इससे पहले जातीय गणना में 21 अगस्त को सुनवाई हुई थी, सुप्रीम कोर्ट ने जातीय गणना पर रोक लगाने की मांग वाली सभी याचिकओं पर एक साथ सुनवाई की थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना औऱ जस्टिस भट्टी की बेंच से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इसमें एक हफ्ते का समय मांगा था। तुषार मेहता की मांग को स्वीकार करते हुए कोर्ट ने इस मामले में समय दिया था। इस मामले को लेकर तुषार मेहता का कहना था कि वो किसी के साइड से नहीं है। लेकिन इस प्रक्रिया के कुछ नतीजे होते है जिसके लिए एक सप्ताह का टाइम चाहिए। जिसके बाद कोर्ट द्वारा 28 अगस्त की तारीख दी गई थी।
पटना हाईकोर्ट के फैसले को दी गई थी चुनौती
दरअसल पटना हाई कोर्ट ने जातीय गणना करने के लिए स्वीकृति दे दी है। पटना हाईकोर्ट के फैसले को याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इस याचिका पर पिछली सुनवाई 18 अगस्त को हुई थी। इस दौरान बिहार सरकार ने कहा था कि बिहार में सर्वे का काम पूरा हो चुका है। आंकड़े भी ऑनलाइन अपलोड की जा रही है। इसके बाद याचिका करता के तरफ से जातीय गणना का ब्योरा रिलीज नहीं करने की मांग की गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को भी खारिज कर दिया था और मामले की सुनवाई 21 अगस्त तक टाल दी गई थी।
डाटा रिलीज करने पर रोक लगाने की मांग
दरअसल, पटना हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। इस याचिका पर पिछली सुनवाई 18 अगस्त को हुई थी। इस दौरान कोर्ट ने कहा था कि बिहार में सर्वे का काम पूरा हो चुका है। आंकड़े भी ऑनलाइन अपलोड की जा रही है। इसके बाद याचिका करता के तरफ से जातीय गणना का ब्योरा रिलीज नहीं करने की मांग की गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मांग को भी खारिज कर दिया था और मामले की सुनवाई 21 अगस्त तक टाल दी गई थी
बता दें कि बीते 1 अगस्त को पटना हाईकोर्ट ने जातीय गणना को चुनौती देने वाली सभी याचिकाएं को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि सरकार चाहे तो गणना करा सकती है। पटना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य सरकार का यह काम नियम संगत है और पूरी तरह से वैध है। राज्य सरकार चाहे तो गणना करा सकती है। हाईकोर्ट ने बिहार में जाति आधारित सर्वेक्षण को ‘वैध’ करार दिया था। इसके तुरंत बाद नीतीश सरकार ने जातीय गणना को लेकर आदेश जारी कर दिया था। पटना हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं