बिहार की सियासत में मो. शहाबुद्दीन वो नाम है, जिसके बिना राष्ट्रीय जनता दल के स्वर्णिम इतिहास की चर्चा नहीं हो सकती। शहाबुद्दीन वो फैक्टर थे, जिसने सीवान में राजद को स्थापित किया और अपने चुनावी जीवन तक बनाए रखा। लेकिन शहाबुद्दीन के सीवान की चुनावी राजनीति से किनारे होते ही राजद का सीवान में तख्तापलट हो गया। शहाबुद्दीन ने अपने राजनीतिक जीवन में लालू यादव का साथ कभी नहीं छोड़ा। लेकिन लालू के परिवार ने शहाबुद्दीन के परिवार को नहीं अपनाया। आज हालात ऐसे हो गए हैं कि लालू के परिवार की राजनीतिक विरासत को लीड कर रहे तेजस्वी यादव को शहाबुद्दीन के परिवार का साथ ऐसा अखर रहा है कि सीवान में कार्यक्रम करने के बाद भी वे मंच साझा नहीं कर रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर शहाबुद्दीन के परिवार ने ऐसा क्या किया है, जो तेजस्वी उनसे दूर हो चुके हैं।
सीवान में तेजस्वी ने वो किया जो लालू नहीं कर सके, शहाबुद्दीन परिवार को दी सीख?
दरअसल, तेजस्वी यादव राजद को नई धारा की पार्टी बनाना चाहते हैं। लालू की मौजूदगी में राजद का मेकओवर को भले ही तेजस्वी पूरी तरह अंजाम न दे पाए हों लेकिन ए टू जेड की पार्टी जैसे बयान देकर तेजस्वी यादव ने अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की है। सीवान में शहाबुद्दीन की बदौलत ही राजद को जीत मिलती रही है। 1996 से लेकर 2004 तक शहाबुद्दीन सीवान के सांसद राजद के टिकट पर रहे। इस तरह सीवान में 8 सालों में हुए चार लोकसभा चुनावों में राजद की जीत हुई। लेकिन शहाबुद्दीन को सजा मिलने के बाद उनकी चुनावी नैया डूबने के साथ ही राजद का सितारा भी सीवान में गर्दिश में खो गया।
अब तेजस्वी यादव की कोशिश सीवान में जगह बनाने को लेकर है। जिसके लिए वे प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इस कोशिश में तेजस्वी ने शहाबुद्दीन के परिवार यानि उनकी पत्नी हीना शहाब, बेटे ओसामा को किनारे कर दिया है। इसका बड़ा कारण यह बताया जा रहा है कि शहाबुद्दीन की मौत के बाद अब शहाबुद्दीन के परिवार में वैसी पब्लिक अपील नहीं है। इसका कारण यह माना जा रहा है कि शहाबुद्दीन की पत्नी 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव राजद के टिकट पर लड़ने के बावजूद हारी हैं।
इसके अलावा तेजस्वी यादव को अवध बिहारी चौधरी का साथ अब शहाबुद्दीन से अधिक पसंद आने लगा है। अवध बिहारी चौधरी पुराने नेता हैं। 1985 से 2005 तक हुए सीवान विधानसभा सीट के पांच चुनावों में अवध बिहारी चौधरी जीते थे। इसके बाद 2005 से 2015 तक हुए तीन चुनावों में यह सीट भाजपा के खाते में चली गई। लेकिन 2020 के चुनाव में अवध बिहारी चौधरी ने फिर वापसी की है। इसके साथ ही 2022 में जब महागठबंधन की सरकार बिहार में बनी तो तेजस्वी ने अवध बिहारी चौधरी को प्रमोशन देकर विधानसभा अध्यक्ष बनवाया। इसलिए अब यह माना जा रहा है कि अवध बिहारी चौधरी अब शहाबुद्दीन परिवार को रिप्लेस कर सीवान से 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। शहाबुद्दीन अब जिंदा नहीं हैं और उनका परिवार शहाबुद्दीन की राजनीतिक विरासत को आगे ले जा सकने में सक्षम नहीं रहा है। इसलिए तेजस्वी यादव ने शहाबुद्दीन के परिवार को किनारे कर सीवान अपने दल की पैठ बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया है।