पूर्व विधान पार्षद डॉ. रणबीर नंदन ने कहा है कि मौजूदा वक्त में जो समस्या तेजी से उभर रही है, उसमें वेस्ट मैनेजमेंट प्रमुख है। लेकिन यह किसी एक राज्य या देश की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे विश्व की समस्या है। इसका निस्तारण तभी हो सकता है जब इसके लिए अलग से व्यवस्था हो। मौजूदा व्यवस्था में यह जिम्मा नगर निकायों के पास है, जो पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि इसके लिए केंद्र और राज्यों में अलग विभाग की व्यवस्था हो।
भारत से हर साल निकलता है 277 अरब किलो वेस्ट
डॉ. नंदन ने कहा कि भारत से हर साल 277 अरब किलो वेस्ट निकलता है यानी प्रति व्यक्ति करीब 200 किलो से अधिक वेस्ट निकलता है। लेकिन इसके बाद के आंकड़े चौंकाने वाले हैं, क्योंकि कुल वेस्ट मेटेरियल का 70 प्रतिशत ही इकट्ठा हो पाता है। शेष 30 प्रतिशत जमीन और पानी में फैला रहता है। यही नहीं जो वेस्ट इकट्ठा हुआ उसमें आधा या तो खुले में फेंक दिया जाता है या फिर जमीन में दबा दिया जाता है। जबकि कुल कचरे का सिर्फ पांचवा हिस्सा ही रिसाइकिलिंग के लिए उपलब्ध होता है। यह स्थिति भयावह है।
बिहार में एक लाख टन से अधिक ई-कचरा निकल रहा
डॉ. नंदन ने कहा कि वेस्ट मैनेजमेंट अब और चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में ई-वेस्ट भी इसमें शामिल हो गया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में बिहार में एक लाख टन से अधिक ई-कचरा निकल रहा है। पिछले नौ वर्षों में 500% ई-कचरा बढ़ने का अनुमान है। यानि बिहार में ई-कचरा लगातार बढ़ रहा है। इस खतरे को माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पहले ही भांप लिया था और 2013 में ही उन्होंने ई-कचरे का आंकलन शुरू कराया। तब आई रिपोर्ट में बिहार के महज चार शहरों में 23 हजार टन से अधिक इ-कचरा फेंका जा रहा था।