पटना: जन सुराज पार्टी के संस्थापक और चर्चित चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बहुप्रतीक्षित ‘बिहार बदलाव रैली’ पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित हुई, लेकिन यह रैली उनके दावों से कोसों दूर रही। प्रशांत किशोर ने दावा किया था कि इस रैली में 10 लाख लोग पहुंचेंगे और गांधी मैदान खचाखच भर जाएगा, लेकिन हकीकत ने उनके दावों की हवा निकाल दी। दोपहर 3:10 बजे तक गांधी मैदान का अधिकांश हिस्सा खाली पड़ा रहा, और सन्नाटा साफ तौर पर उनकी रणनीति पर सवाल खड़े कर रहा था। तस्वीरों में गांधी मैदान की हकीकत साफ दिखाई दी। मैदान में लाल और नीले रंग के तंबू तो लगाए गए थे, लेकिन उनमें लोग नजर नहीं आए। मैदान का ज्यादातर हिस्सा खाली रहा, और जो थोड़े-बहुत लोग पहुंचे, वे भी प्रशांत किशोर के दावों को साकार करने के लिए नाकाफी साबित हुए। इस नजारे ने न सिर्फ उनकी रैली को फ्लॉप करार दिया, बल्कि उनकी राजनीतिक विश्वसनीयता पर भी सवाल उठा दिए।
गांधी मैदान का ऐतिहासिक महत्व
60 एकड़ में फैला गांधी मैदान बिहार की राजनीति का एक ऐतिहासिक केंद्र रहा है। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक भारत तक, इस मैदान ने कई बड़े आंदोलनों और नेताओं को देखा है। महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, सुभाष चंद्र बोस और इंदिरा गांधी जैसे दिग्गजों ने यहां लाखों की भीड़ को संबोधित किया है। ऐसे में इस मैदान में भीड़ न जुटा पाना प्रशांत किशोर के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
प्रशांत किशोर का दावा और हकीकत
प्रशांत किशोर ने 2 अक्टूबर 2024 को जन सुराज पार्टी की स्थापना की थी और बिहार में बदलाव का नारा दिया था। उनकी पार्टी का मुख्य फोकस शिक्षा, रोजगार और आर्थिक विकास पर रहा है। हाल ही में उन्होंने बिहार के खराब क्रेडिट-टू-डिपॉजिट रेशियो का मुद्दा उठाया था, जिसमें उन्होंने दावा किया था कि अगर यह रेशियो 70% तक बढ़ जाए, तो बिहार को 2.5 लाख करोड़ रुपये का लोन मिल सकता है, जिससे राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है। लेकिन आज की रैली में भीड़ की कमी ने उनके इन दावों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
आगामी चुनावों पर असर
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अक्टूबर-नवंबर में होने वाले हैं, और यह रैली प्रशांत किशोर के लिए एक अहम मौका थी, जिसमें वह अपनी पार्टी की ताकत और जनता के बीच अपनी स्वीकार्यता को साबित कर सकते थे। लेकिन रैली का फ्लॉप होना उनकी पार्टी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस असफलता से प्रशांत किशोर की रणनीति पर सवाल उठेंगे, और उनकी पार्टी को चुनाव से पहले अपनी रणनीति में बड़े बदलाव करने पड़ सकते हैं। प्रशांत किशोर का राजनीतिक सफर हमेशा से चर्चा में रहा है। 2014 में नरेंद्र मोदी की लोकसभा चुनाव जीत में उनकी रणनीति की अहम भूमिका रही थी। इसके बाद उन्होंने कई राज्यों में पार्टियों के लिए काम किया, लेकिन अब अपनी पार्टी के साथ उनकी यह पहली बड़ी असफलता सामने आई है। सवाल यह है कि क्या प्रशांत किशोर इस झटके से उबर पाएंगे और बिहार की सियासत में अपनी जगह बना पाएंगे? यह आने वाले दिनों में साफ होगा।