बिहार की राजनीति में सोमवार को एक ऐतिहासिक मोड़ आया, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राजधानी पटना में आयोजित ‘संविधान सुरक्षा सम्मेलन’ के मंच से अपनी पार्टी की ऐतिहासिक भूल को खुले मंच पर स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि “मैं पहला व्यक्ति हूं जो यह कह रहा है — हमने गलती की थी। जो काम पहले होने चाहिए थे, जिस रफ्तार से होने चाहिए थे, वह नहीं हो सके।”
दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा अब कांग्रेस की प्राथमिकता
राहुल गांधी ने साफ किया कि अब कांग्रेस की दिशा बदली है। उन्होंने कहा कि अब पार्टी का मुख्य फोकस गरीब, दलित, ईबीसी, ओबीसी, महादलित और आदिवासी वर्ग के सामाजिक और राजनीतिक सशक्तिकरण पर होगा। उन्होंने जिलाध्यक्षों की नई नियुक्तियों का हवाला देते हुए कहा कि “पहले दो-तिहाई जिलाध्यक्ष सवर्ण हुआ करते थे, लेकिन अब हमने बदलाव किया है। इस बार दो-तिहाई पद पिछड़े, दलित और महादलित वर्ग को दिए गए हैं।”
“अब दरवाजे खुलेंगे युवाओं और वंचितों के लिए”
राहुल गांधी ने यह भी स्पष्ट किया कि कांग्रेस अब राजनीति को विशेष वर्गों की जागीर नहीं रहने देगी। उन्होंने कहा कि “हम चाहते हैं कि युवा, महिलाएं और वंचित वर्ग राजनीति में आगे आएं। कांग्रेस उनका मंच बनेगी।” राहुल ने अपने संबोधन में बिहार की ऐतिहासिक राजनीतिक भूमिका की सराहना करते हुए कहा कि “जब-जब देश में बड़ा बदलाव हुआ, बिहार अग्रणी रहा। अब वक्त फिर से बदलाव का है और बिहार की जनता इसे शुरू करेगी।”
क्या बिहार से होगी कांग्रेस की वापसी?
बिहार जैसे राज्य, जहां जातिगत समीकरण चुनावी जीत का आधार बनते हैं, वहां राहुल गांधी का यह बदलाव का एजेंडा कांग्रेस को नए सिरे से स्थापित करने की कोशिश मानी जा रही है। अब देखना दिलचस्प होगा कि यह ‘स्वीकृति और सुधार’ की रणनीति कांग्रेस को सत्ता के करीब लाती है या यह भी एक प्रयोग बनकर रह जाती है।