बिहार के बाद अब देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया तेज़ी से चल रही है, लेकिन इसी बीच लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने इस मुद्दे को लेकर चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं। राहुल गांधी ने बीएलओ की मौतों का हवाला देते हुए SIR को ‘सुधार नहीं, बल्कि थोपे गए ज़ुल्म’ करार दिया है। उनके मुताबिक जिस देश का सॉफ्टवेयर दुनिया चलाता है, उसी देश में मतदाताओं को खुद का नाम खोजने के लिए 22 साल पुरानी मतदाता सूची के स्कैन पन्नों में भटकना पड़ रहा है।
राहुल गांधी ने एक मीडिया रिपोर्ट साझा करते हुए एक्स पर लिखा कि SIR के चलते केवल तीन हफ्तों में 16 बीएलओ की मौत हो चुकी है, जिनमें हार्ट अटैक, तनाव और आत्महत्या जैसी घटनाएँ शामिल हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या सुधार के नाम पर सरकारी कर्मचारियों पर जानलेवा दबाव बनाना उचित है और क्या चुनाव आयोग का यह मॉडल लोकतांत्रिक पारदर्शिता का मज़ाक नहीं बन रहा?

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग ने ऐसी व्यवस्था बना दी है, जिसमें नागरिकों को अपने नाम तलाशने के लिए हजारों स्कैन पन्ने पलटने पड़ रहे हैं। डिजिटल इंडिया के दौर में जब भारत वैश्विक स्तर पर अत्याधुनिक तकनीक का निर्माण करता है, तब मतदाता सूची को मशीन-रीडेबल और आसानी से खोजी जाने योग्य बनाने की बजाय उसे कागज़ों के बोझ तले दबाना लोगों को थकाने की एक रणनीति जैसा प्रतीत होता है।
राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा कि अगर चुनाव आयोग की नीयत पारदर्शिता की होती, तो SIR की प्रक्रिया को जल्दबाज़ी में 30 दिनों की सीमा में नहीं ठूंसा जाता, बल्कि इसके लिए पर्याप्त समय देकर जवाबदेही सुनिश्चित की जाती। उन्होंने आरोप लगाया कि यह सिर्फ नाकामी नहीं, बल्कि सुनियोजित चाल है, जिसके तहत नागरिक परेशान हो रहे हैं और बीएलओ की मौतों को “कॉलेटरल डैमेज” की तरह देखा जा रहा है।
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गौरतलब है कि SIR प्रक्रिया वर्तमान में जिन क्षेत्रों में चल रही है, उनमें छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा लक्षद्वीप शामिल हैं। इनमें तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल और पश्चिम बंगाल में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं, जिसकी वजह से यह प्रक्रिया और अधिक संवेदनशील हो गई है।






















