नई दिल्ली : कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज केंद्र सरकार से जाति आधारित जनगणना को लेकर दो अहम मांगें रखीं—इस प्रक्रिया के लिए ठोस बजट आवंटन और एक निश्चित तिथि की घोषणा। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह “लोगों की जनगणना होनी चाहिए, न कि सिर्फ नौकरशाहों की।”
राहुल गांधी ने कहा :
“हमें ऐसी जाति जनगणना की जरूरत है जो न सिर्फ यह बताए कि कौन कितनी संख्या में है, बल्कि यह भी दिखाए कि देश की संपत्ति और संसाधन किस जाति के बीच कैसे बंटे हुए हैं। यही असली नीति निर्माण का आधार होना चाहिए।”
जातिगत असमानता पर राहुल गांधी का तीखा सवाल
राहुल ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वर्तमान व्यवस्था में 90% आबादी को सत्ता और संसाधनों से बाहर रखा गया है। उन्होंने कहा कि ओबीसी, दलित और आदिवासी वर्ग के वास्तविक प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करने के लिए जातिगत आंकड़ों की पारदर्शिता जरूरी है।
पृष्ठभूमि : पहले भी उठा चुके हैं सवाल
राहुल गांधी ने 2023 में छत्तीसगढ़ में भी यही मुद्दा उठाया था, जहां उन्होंने कहा था :
“केवल तीन ओबीसी अधिकारी केंद्र सरकार के 5% से अधिक बजट को नियंत्रित करते हैं, जो सिस्टम में गहरी असमानता को उजागर करता है।”
सामाजिक तनाव के बीच आई मांग
राहुल का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देश में पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़ते सुरक्षा तनाव और सोशल मीडिया पर इस्लामोफोबिक कंटेंट को लेकर सामाजिक असंतुलन देखा जा रहा है।
इस संदर्भ में जातिगत जनगणना की मांग केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और प्रतिनिधित्व की बहस से भी जुड़ी हुई है।
कांग्रेस की रणनीति और संदेश
कांग्रेस लगातार यह दावा करती रही है कि जाति आधारित जनगणना सामाजिक न्याय की आधारशिला है। पार्टी का मानना है कि इसके बिना सटीक आरक्षण नीति, सहायक योजनाएं, और वास्तविक सामाजिक प्रगति संभव नहीं।
जनगणना अब सिर्फ आंकड़ों का विषय नहीं, बल्कि राजनीतिक विमर्श, नीति निर्माण और सामाजिक बदलाव का केन्द्रीय मुद्दा बन चुका है।