पश्चिम बंगाल: नए वक्फ संशोधन कानून को लेकर भड़की हिंसा ने देशभर में हलचल मचा दी है। मुर्शिदाबाद समेत कई इलाकों में हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच हुई हिंसक झड़पों में कई लोगों की जान चली गई, घर-दुकानें जला दी गईं और सैकड़ों हिंदू परिवारों को पलायन करना पड़ा। इस घटना पर उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की कुंडा विधानसभा सीट से विधायक और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक भावनात्मक और कड़ा पोस्ट साझा कर सवाल उठाया कि “आखिर हिंदू कब तक और कहां तक भागेगा?” बता दें , राजा भैया ने अपने पोस्ट की शुरुआत रहीम के दोहे “कह रहीम कैसे निभै, केर बेर को संग…” से की। उन्होंने लिखा, “ये सर्वविदित है कि बिल संसद में पास होने के बाद कानून बन जाता है। आज वक्फ के समर्थन और विरोध में देश के सारे राजनीतिक दल और विचारधाराएं दो धड़ों में बंटी हुई हैं।
पक्ष हो या विपक्ष, इतना तो सभी मानेंगे कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में जिन पिता-पुत्र की निर्मम हत्या की गई, जिनके घर-दुकानें जलाई और लूटी गईं, जिन असंख्य हिंदुओं को अपनी औरतों, बच्चों की जान और अस्मिता बचाने के लिए घर-गांव छोड़कर पलायन करना पड़ा, उनका वक्फ संशोधन बिल से कोई लेना-देना नहीं है। बिल पास होने में उनकी कोई भूमिका नहीं। उन्हें तो शायद ये भी नहीं पता कि वक्फ क्या है।” उन्होंने सवाल उठाया, “आखिर उनका दोष क्या था? मस्जिद के सामने डीजे भी तो नहीं बजा रहे थे! वक्फ एक्ट का बहाना लेकर अल्पसंख्यकों ने बिना उकसावे के सुनियोजित हिंसक हमला किया है। आए दिन ऐसे हमले झेलना अब हिंदुओं की नियति बन चुकी है।
आखिर हिंदू कब तक और कहां तक भागेगा? बांग्लादेश से तो ये सोचकर भागे थे कि भारत में सुरक्षित रहेंगे, अब यहां से भागकर कहां जाएंगे?” राजा भैया ने संविधान का हवाला देते हुए कहा, “संसद से लेकर सड़कों तक संविधान लहराने वालों को याद रखना चाहिए कि संविधान शिल्पी बाबा साहेब के संविधान में वक्फ नाम का शब्द कभी था ही नहीं, न ही उनकी परिकल्पना में इसका कोई औचित्य था। हत्या, लूटपाट और बर्बरता ‘काफिरों’ के साथ हो रही है। मारने से पहले किसी की जाति नहीं पूछी जा रही।” उन्होंने पिछड़े और दलित वर्गों के नेताओं की चुप्पी पर भी निशाना साधा। राजा भैया ने लिखा, “सबसे बड़ी विडंबना ये है कि पिछड़ों और दलितों के तथाकथित स्वयंभू नेताओं की इस पर मुंह खोलने की हिम्मत तक नहीं है। बिल तो बस बहाना है, मकसद ‘काफिरों’ को मिटाना है।” उन्होंने अपने पोस्ट का अंत संस्कृत सूक्ति “धर्मो रक्षति रक्षितः” (धर्म रक्षितों की रक्षा करता है) के साथ किया।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद, दक्षिण 24 परगना, मालदा और अन्य जिलों में हुई हिंसा में बांग्लादेशी कट्टरपंथियों और आतंकी संगठनों के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियों ने दावा किया है कि बांग्लादेश स्थित संगठन अंसार उल बांग्ला टीम (एबीटी) और अन्य कट्टरपंथी समूहों ने हिंसा को भड़काने में भूमिका निभाई। बीजेपी नेताओं ने इस मामले की एनआईए जांच की मांग की है, जबकि टीएमसी और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शांति की अपील करते हुए कहा है कि वक्फ कानून राज्य में लागू नहीं होगा। इस हिंसा ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया है। बीजेपी ने ममता बनर्जी पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लगाया, तो टीएमसी ने बीजेपी पर सांप्रदायिक तनाव भड़काने का पलटवार किया। सुप्रीम कोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें हिंसा की कोर्ट की निगरानी में SIT या न्यायिक जांच की मांग की गई है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने भी हिंसा प्रभावित इलाकों में केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया है।
राजा भैया की इस टिप्पणी ने पश्चिम बंगाल की हिंसा पर देशव्यापी बहस को और हवा दी है। उनके बयान को सोशल मीडिया पर व्यापक समर्थन और आलोचना दोनों मिल रही है। कुछ लोग इसे हिंदुओं की पीड़ा को मुखर करने वाला बयान मान रहे हैं, तो कुछ ने इसे सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने वाला करार दिया। मुर्शिदाबाद में हिंसा के बाद स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, लेकिन तनाव बरकरार है। पुलिस ने 200 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है, और बीएसएफ ने प्रभावित इलाकों में गश्त बढ़ा दी है। हिंसा में पिता-पुत्र की हत्या के मामले में दो आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें एक बांग्लादेश सीमा से पकड़ा गया। इस घटना ने न केवल पश्चिम बंगाल की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं, बल्कि देश में वक्फ कानून को लेकर चल रही बहस को भी नया आयाम दिया है। राजा भैया का यह बयान इस संवेदनशील मुद्दे पर और गहरी चर्चा को जन्म दे सकता है।