नवादा जिले की रजौली विधानसभा सीट (Rajouli Vidhan Sabha 2025), जो अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है, बिहार की राजनीति में एक दिलचस्प पहचान रखती है। यह सीट न केवल अपने खनिज संसाधनों और प्राकृतिक संपदा के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां की सामाजिक-सियासी परिस्थितियां भी हमेशा चर्चा में रहती हैं। रजौली की भौगोलिक स्थिति इसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील बनाती है, क्योंकि यह क्षेत्र लंबे समय से नक्सली गतिविधियों से प्रभावित रहा है।
राजनीतिक इतिहास
1951 में जब यह क्षेत्र पहली बार विधानसभा बना, तब से अब तक के 17 चुनावों में किसी एक दल का वर्चस्व नहीं रहा। कांग्रेस ने शुरुआती दौर में मजबूत पकड़ बनाई और पहले पांच चुनावों में चार जीत दर्ज की। लेकिन 1969 में भारतीय जनसंघ (जो बाद में भाजपा बनी) ने कांग्रेस का यह दबदबा तोड़ दिया। इसके बाद 1972 में कांग्रेस ने आखिरी बार जीत हासिल की।
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जनसंघ और भाजपा ने मिलकर चार बार जीत दर्ज की, जबकि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने भी चार बार जनता का भरोसा जीता है। इसके अलावा, जनता पार्टी, जनता दल और स्वतंत्र उम्मीदवारों ने भी कभी-कभार इस सीट पर कब्जा जमाया। 2000 के बाद रजौली का चुनावी गणित लगभग RJD बनाम BJP तक सीमित हो गया है। वर्ष 2000 और 2005 में RJD ने जीत हासिल की, जबकि उसी वर्ष हुए पुनःचुनाव और 2010 में भाजपा ने पलटवार किया। 2015 और 2020 में फिर RJD के प्रकाश वीर ने बाजी मारी और सीट अपने नाम की।
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में प्रकाश वीर ने भाजपा के कन्हैया कुमार को मात दी थी। प्रकाश वीर को 67,000 से अधिक वोट मिले, जबकि कन्हैया कुमार 57,391 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। निर्दलीय अर्जुन राम तीसरे नंबर पर थे।
जातीय समीकरण
यहां SC समुदाय के मतदाता 30.23% हैं जबकि मुस्लिम मतदाता 10.3% हैं। RJD को इन दोनों समुदायों के एकजुट होने पर लाभ मिलता है, वहीं भाजपा की रणनीति इन्हें अलग रखने की रही है। यह चुनाव इस बात का संकेत था कि रजौली के मतदाता जातीय और राजनीतिक समीकरणों से आगे बढ़कर विकास को मुद्दा बना रहे हैं।






















