Rajpur Vidhansabha 2025: राजपुर विधानसभा (संख्या 202) बिहार की उन खास सीटों में गिनी जाती है जो न सिर्फ जातीय समीकरणों से बल्कि सामाजिक न्याय की राजनीति से भी तय होती हैं। यह सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए आरक्षित है और यहां दलित समाज की राजनीतिक चेतना ने हमेशा चुनावी परिणामों को प्रभावित किया है। कैमूर और रोहतास (सासाराम) जिले की सीमाओं से सटी यह सीट उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले से भी जुड़ी है, जो इसे भूगोल और जनसांख्यिकी दोनों दृष्टियों से रणनीतिक बनाती है।
चुनावी इतिहास
1977 में अस्तित्व में आई इस सीट ने अब तक 11 बार चुनाव देखे हैं। इसके अंतर्गत रोहतास जिला का राजपुर ब्लॉक, बक्सर जिला के इटाढ़ी ब्लॉक और डुमरांव ब्लॉक की कुछ पंचायतें आती हैं। यहां का सामाजिक ढांचा दलित, यादव, ब्राह्मण और कोइरी मतदाताओं के प्रभाव से तय होता है।
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स्वतंत्रता के बाद के दो दशकों तक कांग्रेस ने राजपुर विधानसभा पर मजबूत पकड़ बनाए रखी थी। लेकिन 1970 के दशक के बाद जब समाजवादी राजनीति ने बिहार में अपनी जड़ें जमाईं, तब यहां जनता पार्टी और जनता दल का उदय हुआ। दलित और पिछड़े वर्ग के नेताओं ने इस दौर में पहली बार बड़ी राजनीतिक भूमिका निभाई।1990 के दशक में लालू प्रसाद यादव की सामाजिक न्याय की राजनीति ने इस क्षेत्र में राजद का वर्चस्व कायम किया। लालू यादव के “भूरा बाल साफ करो” नारे ने दलित समुदाय में जोश भरा और राजपुर ने इस विचारधारा को समर्थन दिया। हालांकि, यहां वामपंथी दलों का प्रभाव भी लंबे समय तक महसूस किया गया।
2005 से लेकर 2015 तक जेडीयू ने राजपुर पर लगातार दबदबा बनाए रखा। 2010 और 2015 दोनों चुनावों में सत्यदेव राम ने जीत दर्ज की, खासकर 2015 में जब महागठबंधन (जेडीयू-राजद-कांग्रेस) एकसाथ चुनाव लड़ा।लेकिन 2020 का चुनाव राजनीतिक समीकरणों को पलट देने वाला साबित हुआ। इस बार राजद के संतोष कुमार ने सत्यदेव राम को मात देकर सीट पर कब्जा कर लिया। यह जीत इसलिए भी अहम थी क्योंकि इसे जेडीयू का गढ़ माना जाता था। विश्लेषकों का मानना है कि उस समय लोजपा के प्रत्याशी ने वोट काटे, जिससे राजद को अप्रत्याशित लाभ मिला।
जातीय समीकरण
राजपुर विधानसभा में कुल 3 लाख 41 हजार मतदाता हैं। इनमें 1.78 लाख पुरुष और 1.63 लाख महिला मतदाता शामिल हैं। दलित समुदाय के साथ-साथ यादव, ब्राह्मण और कोइरी मतदाता चुनावी पलड़े को झुका सकते हैं। राजपुर में जातीय और राजनीतिक दोनों समीकरणों का सीधा असर उम्मीदवारों के चयन पर पड़ता है। यहां का वोटर सामाजिक न्याय के साथ स्थानीय विकास को भी तरजीह देता है। यही कारण है कि इस बार राजद और जेडीयू के बीच फिर से कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। एनडीए की कोशिश होगी कि वह अपने पारंपरिक मतदाताओं को संगठित कर एक बार फिर इस सीट को अपने कब्जे में करे।
राजपुर सीट पर दलित समाज की जागरूकता, स्थानीय विकास कार्य और गठबंधन की रणनीति निर्णायक साबित होगी। एनडीए जहां “विकास और सुशासन” के एजेंडे पर मैदान में उतरने की तैयारी में है, वहीं राजद सामाजिक न्याय और रोजगार जैसे मुद्दों पर जनता से संवाद बना रही है। ऐसे में राजपुर विधानसभा 2025 का चुनाव इस बार सिर्फ एक सीट की लड़ाई नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं की टक्कर बनने जा रहा है।






















