[Team Insider] खेती को लेकर लगातार नए नए प्रयोग किए जा रहे हैं । इसमें अब झारखंड भी पीछे नहीं है। कुछ ऐसी फसलें हैं जो कुछ खास जगहों पर उगती है या उगाई जाती है| जी हां हम बात कर रहे हैं सेब की| सेब का नाम आते हैं हिमाचल और कश्मीर की याद आ जाती है । क्योंकि यह खेती अमूमन ठंडे प्रदेशों में होता है । और वहां की जलवायु सेब के लिए अनुकूल होता है। लेकिन झारखंड जैसे गर्म राज्य में भी सेब की खेती की जाएंगी। वही गर्मियों के मौसम में रांची सहित छोटानागपुर के बड़े इलाके में पानी का गहरा संकट पैदा हो जाता है। बहरहाल बिरसा कृषि विवि कम पानी में फसल पैदा करने की तैयारी में जुटा है।
कम पानी में अच्छी की कोशिश
बिरसा कृषि विवि के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह कहते हैं कि हर तरह के फसलों के लिए हमारी कोशिश है। प्रयास है कि कम पानी में अच्छी उपज देने वाली प्रजातियां विकसित की जायें। उनके अनुसार बिरसा कृषि विवि ने अबतक चावल, गेहूं, मक्का, मडुआ, मूंगफली सहित विभिन्न दलहनी, तेलहनी आदि फसलों की 50 से अधिक उम्दा वेरायटी विकसित किया है। इनमें एक दर्जन से अधिक चावल के किस्म हैं तो गेहूं की भी चार वेरायटी है I
किसानों को मेहनत का फायदा मिले
हमारी कोशिश है कि किसानों को मेहनत का फायदा हो, किसान खेती को लेकर प्रोत्साहित हों। इसे ध्यान में रखते हुए चारों तरफ कम समय में तैयार होने वाले फसलों की वेरायटी तैयार करने पर काम हो रहा है। सफलता भी मिल रही है। धान तैयार होने में पहले 140 दिन लगता था, अब नयी वेरायटी के धान 70-80 दिनों में भी तैयार होने लगे हैं। बिरसा कृषि विवि द्वारा विकसित मूंगफली के बिरसा बोल्ड प्रभेद को तो केन्द्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा देश का सर्वोत्तम कन्फेक्शनरी प्रभेद घोषित किया गया था।

स्ट्राबेरी और सेब से बढ़ेगी किसानों की आय
डॉ ओंकार नाथ सिंह कहते हैं कि झारखंड में स्ट्राबेरी और सेव की खेती पर अभी हमारा विशेष ध्यान है। स्ट्राबेरी बिरसा कृषि विवि के फार्म में लगवाया भी है, सेव लगवाने जा रहे हैं। स्ट्राबेरी से उम्मीद है कि इससे किसानों की अच्छी आय होगी। कम समय में ही झारखंड में भी सेव की फसल लहलहायेगी । एक माह में सेव का पौधा आ जायेगा। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी कुछ क्षेत्रों में सेव सफलतापूर्वक उगाया जा रहा हैI सेव को लोग सिर्फ ठंडे प्रदेशों से जोड़ कर देखते हैं। यहां की जलवायु में सेव उपज सके, ऐसी प्रजातियां भी उपलब्ध हैं।
दलहन में सर्वाधिक संभावनाएं
दलहन को ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं होती है। पूरे देश में झारखंड में दलहनी फसलों के इलाका विस्तार की सर्वाधिक संभावना है। वजह यह है कि करीब 80 प्रतिशत इलाका वर्षा आधारित खेती के कारण रबी के मौसम में खेती लायक जमीन खाली रहती है।

















