नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच बेहतर होते राजनयिक संबंधों के बीच एक बड़ी खबर सामने आई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गुरुवार को घोषणा की कि कैलाश मानसरोवर यात्रा जल्द ही शुरू होने वाली है। इस पवित्र हिंदू तीर्थयात्रा को 2019 के बाद से निलंबित कर दिया गया था, पहले कोविड-19 महामारी और फिर 2020 में गलवान संघर्ष के बाद भारत-चीन सीमा तनाव के कारण।
रणधीर जायसवाल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह जानकारी देते हुए देखा जा सकता है। उन्होंने कहा, “हम जल्द ही कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जनता के लिए नोटिस जारी करेंगे। जल्द ही यात्रा की शुरुआत होने की संभावना है।” इस घोषणा से उन हजारों श्रद्धालुओं में उत्साह है, जो इस तीर्थयात्रा का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
यात्रा का इतिहास और महत्व
कैलाश मानसरोवर यात्रा भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा आयोजित की जाती है और इसमें कई राज्य एजेंसियों का सहयोग होता है। यह यात्रा आमतौर पर जून से सितंबर के बीच आयोजित की जाती है। तिब्बत में स्थित पवित्र कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, 2019 के बाद से यह यात्रा बंद थी, जिसके पीछे पहले महामारी और फिर भारत-चीन के बीच सीमा तनाव मुख्य कारण थे। 2017 में भी डोकलाम विवाद के दौरान चीन ने यात्रा को रोक दिया था, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया था।
हालिया राजनयिक प्रयास
हाल के महीनों में भारत और चीन के बीच राजनयिक संबंधों में सुधार देखा गया है। मार्च 2025 में बीजिंग में आयोजित 33वीं वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन (WMCC) बैठक में दोनों देशों ने सीमा पार सहयोग, जिसमें कैलाश मानसरोवर यात्रा भी शामिल है, को फिर से शुरू करने पर चर्चा की थी। इस बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) गौरंगलाल दास ने किया था, जबकि चीनी पक्ष का नेतृत्व सीमा और समुद्री मामलों के महानिदेशक होंग लियांग ने किया था।
इसके अलावा, 2023 में नेपाल-चीन सीमा पर केरुंग और तातोपानी जैसे बॉर्डर क्रॉसिंग को फिर से खोले जाने से क्षेत्रीय यात्रा और तीर्थयात्रा की संभावनाएं बढ़ी हैं। इन कदमों ने कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने की राह आसान की है।
श्रद्धालुओं के लिए उम्मीद की किरण
विदेश मंत्रालय की वेबसाइट (kmy.gov.in) के अनुसार, यात्रा के लिए सख्त पात्रता मानदंड और शर्तें लागू होती हैं, जिसमें सही जानकारी प्रदान करना और चयनित मार्गों (जैसे लिपुलेख या नाथू ला) के लिए प्राथमिकता देना शामिल है। यात्रा के दौरान हेलीकॉप्टर निकासी और अन्य आपातकालीन प्रावधानों के लिए सहमति भी अनिवार्य है।
रणधीर जायसवाल की इस घोषणा ने श्रद्धालुओं में नई उम्मीद जगाई है। माना जा रहा है कि जल्द ही मंत्रालय की ओर से विस्तृत दिशानिर्देश और आवेदन प्रक्रिया जारी की जाएगी, जिससे यह पवित्र यात्रा एक बार फिर शुरू हो सकेगी।
पिछले अनुभव और भविष्य की संभावनाएं
2017 में डोकलाम विवाद के दौरान चीन ने नाथू ला मार्ग से यात्रा को रोक दिया था, जिसके बाद से दोनों देशों के बीच तीर्थयात्रा पर असर पड़ा था। हालांकि, हाल के वर्षों में सीमा तनाव को कम करने के प्रयासों और 2020 के बाद से धीरे-धीरे सामान्य होते हालात ने इस यात्रा के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया है।
यह घोषणा न केवल धार्मिक महत्व रखती है, बल्कि भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक और राजनयिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में भी एक सकारात्मक कदम मानी जा रही है। श्रद्धालु अब इस पवित्र यात्रा के लिए तैयारियों में जुट गए हैं, और उम्मीद है कि यह यात्रा जल्द ही शुरू होकर उन्हें कैलाश पर्वत के दर्शन का सौभाग्य प्रदान करेगी।