भारत पक्षियों की विविध प्रजातियों का घर है। इनमें से 300 से अधिक प्रजातियां बिहार के एकमात्र वाल्मीकि टाइगर रिजर्व (VTR) की शोभा बढ़ाती हैं। पर्यटक यहां वन्यजीवों के साथ-साथ पक्षियों को देखने के लिए भी आते हैं। इन पक्षियों में से एक विशेष पक्षी धनेश, जिसे अंग्रेजी में हॉर्नबिल कहा जाता है, भारतीय संस्कृति और पारिस्थितिकी में एक अद्वितीय स्थान रखता है।
धनेश पक्षी: सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक
भारतीय संस्कृति में धनेश को सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। नेचर एनवायर्नमेंट वाइल्डलाइफ सोसाइटी के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिषेक के अनुसार, यह पक्षी पेड़ों के खोखले हिस्सों में घोंसला बनाता है। मादा धनेश अंडे देने के बाद घोंसले के भीतर रहती है, जबकि नर भोजन लाकर उसकी सहायता करता है। बच्चों के मल-मूत्र से घोंसला गंदा होने पर मादा गंदे पत्तों को बाहर फेंकती है और नए पत्तों से बिस्तर तैयार करती है, जो मानव द्वारा बच्चों का डायपर बदलने जैसा है।
भारत में धनेश की प्रजातियां
भारत में धनेश की नौ प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से तीन प्रजातियां वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में मिलती हैं। इन पक्षियों की पहचान उनकी चोंच के ऊपर सींग जैसे उभार से होती है, जिसके कारण इन्हें हॉर्नबिल कहा जाता है। यह पक्षी अपने जीवनकाल में एक ही साथी के साथ रहते हैं। मादा घोंसले में 1-2 अंडे देती है, जो लगभग 38 दिनों में चूजों में परिवर्तित हो जाते हैं। इस दौरान नर भोजन लाकर मादा और बच्चों की देखभाल करता है। यदि नर भोजन लाने में विफल रहता है, तो मादा और बच्चे घोंसले में ही मर जाते हैं।
धनेश का सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व
धनेश पक्षी का भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान है। पूर्वोत्तर भारत में इसे सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। नागालैंड में हर साल दिसंबर में ‘हॉर्नबिल महोत्सव’ मनाया जाता है, जिसमें इस पक्षी को सम्मानित किया जाता है। हालांकि, अंधविश्वास और प्राकृतिक कठिनाइयों के कारण यह पक्षी खतरे में है।
कुछ लोग मानते हैं कि धनेश का तेल गठिया रोग के लिए रामबाण औषधि है। इस अंधविश्वास के कारण इसका शिकार बढ़ रहा है और इनकी संख्या में गिरावट आ रही है। धनेश का मुख्य भोजन फल, कीड़े-मकोड़े, छिपकली और चूहे होते हैं।
धनेश पक्षी पर खतरे
धनेश पक्षी की संख्या में गिरावट अंधविश्वास, शिकार और प्राकृतिक आवास की कमी के कारण हो रही है। इसके संरक्षण के लिए व्यापक कदम उठाने की आवश्यकता है। VTR और इसके आसपास के क्षेत्रों में धनेश पक्षी देखे जा सकते हैं, जो इस क्षेत्र की जैव विविधता को और भी समृद्ध बनाते हैं।
धनेश पक्षी केवल भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि पारिस्थितिक तंत्र में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसे बचाने के लिए जनजागरूकता और संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देना अत्यंत आवश्यक है।