नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत ने महाराष्ट्र में निकाय चुनावों में आरक्षण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान आरक्षण व्यवस्था पर तीखी टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि भारत में आरक्षण ‘रेल के डिब्बे’ जैसा हो गया है, जहां जो लोग एक बार चढ़ जाते हैं, वे नहीं चाहते कि कोई और अंदर आए।
यह बयान उस याचिका की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण की मांग की गई थी।जस्टिस सूर्यकांत, जो इस साल के अंत में मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं, ने इस मामले में कहा, “आरक्षण की व्यवस्था अब ऐसी हो गई है कि जो लोग इसका लाभ ले चुके हैं, वे दूसरों को मौका नहीं देना चाहते।”
इस सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से वकील गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि OBC के भीतर राजनीतिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को अलग से चिह्नित किया जाना चाहिए, ताकि आरक्षण का सही लाभ जरूरतमंदों को मिल सके।
महाराष्ट्र में OBC आरक्षण का विवाद
यह मामला महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में OBC आरक्षण को लागू करने से जुड़ा है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले 2021 में एक फैसले में कहा था कि OBC आरक्षण लागू करने के लिए राज्य सरकार को ठोस आंकड़े (empirical data) जुटाने होंगे, जिसमें पिछड़ेपन और OBC आबादी का सही अनुपात दर्ज हो।
हालांकि, महाराष्ट्र सरकार इस शर्त को पूरा करने में नाकाम रही, जिसके बाद कोर्ट ने निकाय चुनावों में OBC के लिए आरक्षित 27% सीटों को सामान्य वर्ग में बदलने का आदेश दिया था। इस फैसले ने 2,100 सीटों में से 567 सीटों को प्रभावित किया था।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट के जज आरक्षण को लेकर इसी तरह की टिप्पणियाँ कर चुके हैं। जस्टिस बीआर गवई, जो इस महीने के अंत में मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं, ने भी एक फैसले में ‘रेल के डिब्बे’ के रूपक का इस्तेमाल किया था। उन्होंने अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) के भीतर उप-वर्गीकरण को मंजूरी देते हुए कहा था कि जो लोग पहले से आरक्षण की सूची में हैं, वे दूसरों को इसमें शामिल होने से रोकना चाहते हैं, जैसे रेल के सामान्य डिब्बे में बैठा व्यक्ति नए यात्रियों को जगह नहीं देना चाहता।
इस मामले की अगली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार करेगा कि क्या महाराष्ट्र सरकार OBC आरक्षण के लिए जरूरी डेटा जुटा पाई है, और क्या इस आधार पर निकाय चुनावों में आरक्षण लागू किया जा सकता है। इस बीच, जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी ने एक बार फिर आरक्षण की नीति पर व्यापक बहस छेड़ दी है।