लोकसभा चुनाव के बाद एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) द्वारा जारी एक ताजा रिपोर्ट में राजनीतिक दलों द्वारा किए गए चुनावी खर्च की विस्तृत जानकारी सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार, पांच राष्ट्रीय और 27 क्षेत्रीय दलों द्वारा किए गए खर्च से उनके चुनावी अभियान की प्राथमिकताओं और रणनीतियों का अनुमान लगाया जा सकता है।
बिहार में राजद और जदयू का खर्च प्रमुख
बिहार की प्रमुख विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने कुल 8.715 करोड़ रुपये के खर्च का ब्योरा निर्वाचन आयोग को सौंपा है। इसमें से लगभग 90 प्रतिशत राशि यात्रा मद में खर्च की गई। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, यह राशि मुख्य रूप से तेजस्वी यादव की चुनावी यात्राओं पर खर्च हुई, जिनमें सड़क मार्ग के साथ हेलीकॉप्टर यात्राएं भी शामिल थीं।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) ने 31.376 करोड़ रुपये खर्च किए। जदयू का भी अधिकतर खर्च यात्रा पर हुआ, हालांकि प्रचार-प्रसार पर भी अच्छी-खासी राशि खर्च की गई। जदयू ने खर्च का विवरण मात्र चार दिन की देरी से प्रस्तुत कर तत्परता दिखाई, जबकि राजद और लोजपा (रामविलास) ने इस कार्य में 303 दिन की देरी की।
चुनावी खर्च के मुख्य मद
चुनाव खर्च के प्रमुख मदों में प्रचार, यात्रा, विविध खर्च, प्रत्याशियों को दी गई राशि, आपराधिक मामलों का प्रकाशन, और वर्चुअल प्रचार शामिल हैं। वर्चुअल प्रचार में सोशल मीडिया, एप्स और अन्य ऑनलाइन माध्यमों पर खर्च की गई राशि का भी ब्योरा दिया जाता है।
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एडीआर रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा और चार विधानसभा चुनावों के दौरान कुल 32 राजनीतिक दलों ने 2008.295 करोड़ रुपये प्रचार पर खर्च किए। इसके बाद 795.414 करोड़ रुपये यात्रा पर, 402.177 करोड़ रुपये प्रत्याशियों को देने में, और 400.0515 करोड़ रुपये विविध मद में खर्च किए गए। इंटरनेट मीडिया और वर्चुअल प्रचार पर 132.0853 करोड़ रुपये खर्च हुए। सबसे कम खर्च—28.253 करोड़ रुपये—प्रत्याशियों के आपराधिक रिकॉर्ड के प्रकाशन पर हुआ।
राष्ट्रीय बनाम क्षेत्रीय दलों का खर्च
रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट होता है कि राष्ट्रीय दलों (जैसे भाजपा और कांग्रेस) का खर्च क्षेत्रीय दलों की तुलना में काफी अधिक रहा, क्योंकि उनके चुनावी अभियान का दायरा पूरे देश में फैला हुआ था। इसके विपरीत, राजद, जदयू और लोजपा (रामविलास) का खर्च बिहार तक सीमित रहा, हालांकि राजद ने आंध्र प्रदेश और लोजपा ने अरुणाचल प्रदेश में भी प्रत्याशी उतारे थे।
एडीआर की सिफारिशें और पारदर्शिता की मांग
एडीआर ने सिफारिश की है कि राजनीतिक दलों को चुनावी खर्च का ब्योरा तय समय-सीमा में और निर्धारित प्रारूप में देना अनिवार्य किया जाए। नियमों का उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान होना चाहिए। साथ ही, जैसे प्रत्याशियों के खर्च की निगरानी के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त किए जाते हैं, वैसे ही राजनीतिक दलों के खर्च पर निगरानी रखने के लिए समीक्षक (ऑब्जर्वर) नियुक्त किए जाने चाहिए।