बिहार की सियासत में एक बार फिर हलचल तेज़ हो गई है। विधानसभा चुनावों से पहले जहां एनडीए में दरारें साफ दिखने लगी हैं, वहीं आरजेडी ने पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी को खुले मंच से महागठबंधन में वापसी का आवाहन कर डाला है। आरजेडी के प्रधान महासचिव रणविजय साहू ने सीधे शब्दों में कहा कि “अब मांझी जी का उद्धार महागठबंधन से ही संभव है, बीजेपी-जेडीयू तो ठग पार्टी है!”
एनडीए में दरार, मांझी नाराज़
दरअसल, एनडीए में शामिल हम (हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा) के प्रमुख जीतनराम मांझी ने हाल ही में मांग की थी कि उन्हें 30-40 सीटें चाहिए। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि बीजेपी और जेडीयू ने बिना परामर्श के आपस में सीट बंटवारा कर लिया, और उनके साथ धोखा किया गया है। इस बयान ने बिहार की राजनीति को गरमा दिया है।
आरजेडी ने इस मौके को भांपते हुए मांझी को विचारधारा की राजनीति में वापसी का न्योता दे दिया है। रणविजय साहू ने कहा कि “मांझी जी, अंबेडकर और लालू यादव की उस विचारधारा को फिर से अपनाइए, जो दलितों, शोषितों और वंचितों के अधिकारों की बात करती है। भाजपा तो ठग पार्टी है, जिसने बार-बार आपके साथ छल किया है।”
उन्होंने याद दिलाया कि लालू प्रसाद यादव ने ही भगवतिया देवी को राज्यसभा भेजा, और चूहा पकड़ने वाले, बकरी चराने वाले गरीब तबके को पढ़ने-लिखने की राह दिखाई।
सत्तू, सतवानी और सामाजिक न्याय
इससे पहले तेजस्वी यादव ने सतवानी पर्व के मौके पर महादलित टोला में सत्तू खाकर राजनीतिक संदेश दे दिया था। अब इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए मांझी को महागठबंधन में बुलाकर आरजेडी ने दलित राजनीति के मोर्चे पर एक बड़ा दांव चल दिया है।
रणविजय साहू का यह भी कहना था कि “बिहार की लड़ाई अब झूठ बनाम सच की है। एनडीए की राजनीति में न विचारधारा है, न सम्मान। मांझी जी के समाज का भविष्य वहीं सुरक्षित है, जहां लालू-तेजस्वी की सामाजिक न्याय की परंपरा जीवित है।”
सीट शेयरिंग और 17 अप्रैल की बैठक पर नजर
तेजस्वी यादव की कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात और 17 अप्रैल को पटना में महागठबंधन की अहम बैठक को लेकर भी साहू ने स्पष्ट किया कि चर्चा जारी है और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में सरकार बनाने का संकल्प पक्का है।
राजनीति में समय और संदेश, दोनों अहम होते हैं। मांझी की नाराजगी और एनडीए में बढ़ती खटपट के बीच आरजेडी का यह निमंत्रण सिर्फ गठबंधन की मजबूती नहीं, बल्कि दलित राजनीति के नए समीकरण की ओर इशारा करता है। यह चुनावी मोर्चे से पहले वैचारिक युद्धभूमि तैयार करने की कोशिश है।
अब देखना यह होगा कि जीतनराम मांझी क्या बीजेपी-जेडीयू के “आरोपित छल” से निकलकर RJD की “विचारधारा की चौपाल” पर बैठते हैं या नहीं। लेकिन इतना तय है कि बिहार की राजनीति में अब अगली हलचल मांझी के अगले कदम पर टिकी है।