बिहार कांग्रेस में गहरा अंतर्कलह उस समय खुलकर सामने आ गया जब राहुल गांधी की अध्यक्षता में हुई प्रदेश कांग्रेस की बैठक के बाद नेताओं के विरोधाभासी बयान सामने आए। खासकर, महागठबंधन के संभावित मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर पार्टी के भीतर ही अलग-अलग सुर सुनाई देने लगे हैं।
अलग-अलग सुर: तेजस्वी सीएम फेस या नहीं?
बैठक के बाद प्रदेश कांग्रेस प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने तेजस्वी यादव को महागठबंधन का सीएम फेस मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने यह बयान देकर कांग्रेस की रणनीति को लेकर रहस्य और संदेह का माहौल बना दिया। अल्लावरु के इस बयान से गठबंधन के भीतर दरार की अटकलें तेज हो गईं। लेकिन इसके ठीक एक दिन बाद कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद अखिलेश सिंह ने दिल्ली में साफ शब्दों में कहा कि तेजस्वी ही महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। उन्होंने दो टूक कहा कि “तेजस्वी के नाम पर किसी प्रकार का कोई भ्रम नहीं है। महागठबंधन एकजुट है और सीएम पद के लिए तेजस्वी यादव का नाम पहले से तय है।”
विधायकों की अलग राय, कांग्रेस में असमंजस
दिल्ली में हुई इस बैठक के बाद जब विधायक नीतू सिंह पटना लौटीं, तो उन्होंने भी तेजस्वी यादव का समर्थन करते हुए कहा कि “जब हम महागठबंधन में हैं और तेजस्वी इसके नेता हैं, तो वे हमारे भी नेता रहेंगे।”
पटना लौटने के बाद कांग्रेस प्रभारी अल्लावरु ने कहा कि बिहार को लेकर गंभीर चर्चा हुई है और कांग्रेस सभी कार्यकर्ताओं को एकजुट कर मजबूती से काम करेगी। उन्होंने कहा, “पार्टी की रणनीति जल्द ही सामने आएगी।” हालांकि, कांग्रेस की इस स्थिति ने न केवल गठबंधन में, बल्कि पार्टी के भीतर भी असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है।
राजनीतिक मायने: गठबंधन में खटास?
कांग्रेस के इस अंतर्विरोध से गठबंधन की एकजुटता पर सवाल खड़े हो गए हैं। बिहार में राजद कांग्रेस का सबसे बड़ा सहयोगी है, और अगर कांग्रेस तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल खड़ा करती है, तो यह गठबंधन के भविष्य के लिए खतरा बन सकता है।
क्या कांग्रेस बिहार में अपनी पुरानी गलतियों को दोहराने जा रही है? क्या पार्टी के भीतर ही दो गुट बन चुके हैं? और सबसे बड़ा सवाल—क्या महागठबंधन वाकई पूरी मजबूती से चुनावी मैदान में उतर पाएगा? ये सवाल आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति को और गर्माने वाले हैं।