पूर्णिया जिले की सबसे चर्चित सीटों में शामिल Rupouli Vidhansabha रूपौली विधानसभा (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 60) इस समय बिहार की राजनीति का हॉटस्पॉट बनी हुई है। यह क्षेत्र रूपौली, भवानीपुर और बड़हरा कोठी प्रखंडों के साथ कुल 42 पंचायतों को समेटे हुए है। राज्य की राजनीति में इस सीट को हाई-प्रोफाइल माना जाता है क्योंकि यहां का चुनाव परिणाम अक्सर व्यापक राजनीतिक संदेश देता है।
राजनीतिक इतिहास
1951 में इस सीट के गठन के बाद से रूपौली ने कई राजनीतिक उठापटक देखे हैं। कांग्रेस ने 6 बार, जेडीयू ने 3 बार, सीपीआई ने 2 बार, समाजवादी पार्टी, एलजेपी, आरजेडी और जनता दल ने एक-एक बार जीत हासिल की है। इसके अलावा निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी तीन बार कब्जा जमाया है। वर्तमान समय में यह सीट निर्दलीय शंकर सिंह के पास है, जिन्होंने 2024 के उपचुनाव में सभी बड़े दलों को मात देकर इतिहास रच दिया।
Kasba Vidhansabha: कांग्रेस बनाम बीजेपी की टक्कर.. जानिए 2025 में किसका पलड़ा
बीमा भारती का नाम रूपौली से अलग नहीं किया जा सकता। 2000 से उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की और 2015 तक लगातार इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। हालांकि, 2024 में उन्होंने जेडीयू छोड़कर राजद का दामन थामा और लोकसभा चुनाव लड़ा, जिससे यह सीट खाली हो गई। यही खालीपन शंकर सिंह की जीत का बड़ा कारण बना।
2020 का चुनाव और 2024 का उपचुनाव
2020 में जेडीयू की बीमा भारती ने एलजेपी के शंकर सिंह को हराकर जीत दर्ज की थी। उस समय उन्हें 64,324 वोट मिले थे जबकि शंकर सिंह को 44,994 मतों से संतोष करना पड़ा। लेकिन 2024 के उपचुनाव में समीकरण पूरी तरह बदल गए। निर्दलीय शंकर सिंह ने न सिर्फ जीत दर्ज की बल्कि बड़े दलों को उनके परंपरागत वोट बैंक में सेंध लगाकर चौंका दिया।
जातीय और सामाजिक गणित
रूपौली विधानसभा का चुनाव हमेशा जातीय समीकरणों पर टिका होता है। गंगोता समुदाय (50,000+) यहां निर्णायक भूमिका निभाता है। इसके अलावा कुर्मी-कोइरी (30,000–35,000) का “लव-कुश” समीकरण और मुस्लिम-यादव (45,000–50,000) का “MY समीकरण” भी बेहद प्रभावी है। इन समीकरणों के बीच सवर्ण और वैश्य समुदाय (25,000) तथा राजपूत (20,000–25,000) वोट बैंक भी मजबूत स्थिति रखते हैं। खास बात यह है कि मौजूदा विधायक शंकर सिंह स्वयं राजपूत समुदाय से आते हैं, जिससे उन्हें जातीय समर्थन का लाभ भी मिला।
2025 चुनाव की दिशा
2025 के विधानसभा चुनाव में रूपौली सीट पर मुकाबला और रोचक होने की संभावना है। शंकर सिंह की स्वतंत्र जीत ने यह साबित कर दिया है कि मतदाता अब सिर्फ दलों पर नहीं बल्कि स्थानीय प्रभाव और जातीय समीकरणों पर भी भरोसा कर रहे हैं। बीमा भारती अगर दोबारा मैदान में आती हैं तो उनकी लोकप्रियता और शंकर सिंह की बढ़ती पैठ के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। महागठबंधन और एनडीए दोनों की नजरें इस सीट पर टिकी हैं क्योंकि यहां का चुनाव परिणाम राज्य की सत्ता के समीकरण को प्रभावित कर सकता है।






















