Sarairanjan Vidhan Sabha 2025: समस्तीपुर जिले की सरायरंजन विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 136) बिहार की राजनीति में बेहद अहम मानी जाती है। 2008 के परिसीमन के बाद इसका नया स्वरूप सामने आया जब मोरवा प्रखंड को हटाकर विद्यापतिनगर प्रखंड को इसमें शामिल कर लिया गया। आज सरायरंजन विधानसभा में सरायरंजन प्रखंड की 23 और विद्यापतिनगर प्रखंड की 14 पंचायतें शामिल हैं। यह भौगोलिक बदलाव न सिर्फ राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करता है, बल्कि जातीय संतुलन पर भी गहरा असर डालता है।
चुनावी इतिहास
इस सीट पर पिछले तीन विधानसभा चुनावों से जनता दल यूनाइटेड (JDU) का दबदबा कायम है। जेडीयू नेता और नीतीश कुमार के बेहद करीबी माने जाने वाले विजय कुमार चौधरी लगातार तीन बार यहां से विधायक चुने जा चुके हैं। वे न केवल बिहार विधानसभा के 15वें स्पीकर बने, बल्कि सरकार में मंत्री पद भी संभाल चुके हैं। नीतीश कुमार के भरोसेमंद चेहरों में शुमार विजय चौधरी इस सीट की राजनीति को वर्षों से अपने प्रभाव में बनाए हुए हैं।
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2010 के विधानसभा चुनावों में विजय चौधरी ने आरजेडी के दिग्गज नेता और पूर्व मंत्री रामाश्रय सहनी को हराकर सीट पर कब्जा जमाया। दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले वे कांग्रेस से राजनीति शुरू कर चुके थे लेकिन नीतीश कुमार से नजदीकी रिश्तों के कारण जेडीयू में शामिल हो गए। यही उनका राजनीतिक टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
2015 के चुनाव में जेडीयू महागठबंधन का हिस्सा बनी और सरायरंजन सीट से एक बार फिर विजय चौधरी मैदान में उतरे। इस बार उन्होंने बीजेपी के उम्मीदवार रंजीत निर्गुणी को 34 हजार से अधिक वोटों के अंतर से शिकस्त दी और अपनी पकड़ और मजबूत कर ली।
2020 में भी स्थिति बदली नहीं। जेडीयू के विजय चौधरी ने आरजेडी उम्मीदवार अरविंद कुमार सहनी को कड़ी टक्कर में 3624 वोटों से हराया। इस चुनाव में विजय चौधरी को 42.48% वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंदी को 40.36%। यह नजदीकी मुकाबला इस बात का संकेत था कि इस सीट पर जातीय और राजनीतिक समीकरण कितने संवेदनशील हैं।
जातीय समीकरण
सरायरंजन विधानसभा में यादव मतदाता सबसे अधिक प्रभावशाली माने जाते हैं। इनके बाद ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। कुल मतदाताओं की संख्या लगभग 2 लाख 17 हजार है, जिसमें पुरुष मतदाता करीब 1.16 लाख और महिला मतदाता लगभग 1.01 लाख हैं। यही सामाजिक समीकरण चुनावी नतीजों की दिशा तय करने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।
हालांकि विजय चौधरी की लगातार जीत उन्हें मजबूत बनाती है, लेकिन 2020 का चुनावी अंतर बताता है कि विपक्ष धीरे-धीरे पकड़ मजबूत कर रहा है। यादव और मुस्लिम वोट बैंक को साधने की रणनीति अगर विपक्ष ने सही तरह से बनाई, तो जेडीयू के लिए यह सीट चुनौतीपूर्ण बन सकती है। वहीं, विजय चौधरी का राजनीतिक अनुभव, नीतीश कुमार का भरोसा और उनकी लगातार जीत का ट्रैक रिकॉर्ड उन्हें अब तक का सबसे मजबूत दावेदार बनाए रखता है।






















