छपरा : 1857 की क्रांति में अंग्रेजों की चूलें हिला देने वाले अमर शहीद बाबू वीर कुंवर सिंह की वीरगाथा एक बार फिर बिहार की राजधानी पटना में गूंजेगी। सारण विकास मंच द्वारा आगामी 23 अप्रैल को पटना स्थित विद्यापति भवन में वीर कुंवर सिंह का 167वां विजयोत्सव धूमधाम से मनाया जाएगा। इससे पहले गुरुवार, 17 अप्रैल को छपरा में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में सारण विकास मंच के संयोजक श्री शैलेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि इस भव्य आयोजन में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव बतौर उद्घाटनकर्ता और मुख्य अतिथि शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि यह आयोजन सिर्फ एक ऐतिहासिक स्मरण नहीं, बल्कि एक नई पीढ़ी को प्रेरित करने का संकल्प है।
शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि बाबू वीर कुंवर सिंह केवल एक क्षेत्रीय योद्धा नहीं, बल्कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले महानायक थे, जिन्हें लंबे समय तक इतिहास ने वह स्थान नहीं दिया, जिसके वे हकदार थे। वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ नीति को ध्वस्त कर हिंदू-मुस्लिम एकता और जातीय समरसता का अद्भुत उदाहरण पेश किया।
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उन्होंने कहा कि कुंवर सिंह का शौर्य आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने जिस जन समर्थन के साथ लड़ाई लड़ी, उसमें सभी वर्ग, जाति और धर्म के लोगों की एकता देखने को मिली। यह आज के भारत के लिए भी एक गहन संदेश है। यह आयोजन इसलिए जरुरी है क्योंकि आज का युवा वर्ग देश की स्वतंत्रता की बुनियाद रखने वाले अज्ञात नायकों से अनभिज्ञ होता जा रहा है। वीर कुंवर सिंह जैसे योद्धाओं के शौर्य, नेतृत्व और बलिदान की गाथा उन्हें आत्मबल और राष्ट्रभक्ति की प्रेरणा दे सकती है। यह आयोजन एक सांस्कृतिक जागरूकता का मंच बनेगा, जहां न केवल इतिहास को दोहराया जाएगा, बल्कि वर्तमान को दिशा भी मिलेगी।
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श्री सिंह ने बताया कि विजयोत्सव समारोह का उद्घाटन नेता प्रतिपक्ष व बिहार के युवाओं के आदर्श बन चुके तेजस्वी यादव करेंगे। इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान देने वाले समाज के लोगों को सम्मानित किया जाएगा। साथ ही इस कार्यक्रम में बाबू वीर कुंवर सिंह की जीवनी पर आधारित सृष्टि शांडिल्य का लोकनृत्य और उदय नारायण सिंह का गायन होगा।
शैलेंद्र प्रताप सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इतिहास में उपेक्षित रहे वीरों को इतिहास की मुख्यधारा में लाना ही इस आयोजन का उद्देश्य है। कुंवर सिंह का नेतृत्व आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 1857 में था। हमें यह पहचानने की जरूरत है कि आजादी की नींव किन लोगों ने रखी। 23 अप्रैल, विद्यापति भवन, पटना — यह न सिर्फ एक आयोजन की तारीख है, बल्कि वीरता, इतिहास और चेतना के पुनर्जागरण का दिन होगा। जब बाबू वीर कुंवर सिंह की गाथा एक बार फिर जन-जन तक पहुंचेगी, तब यह समझ में आएगा कि इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति तलवार से नहीं, एकता और आत्मबल से लड़ी जाती है।