पटना. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीवान दौरे को लेकर सारण विकास मंच के संयोजक शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि पीएम ने सीवान की धरती से जो भाषण दिया, वह न तो जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरा, न ही उसमें कोई नयापन था। यह भाषण मोदी जी की पुरानी आदतों का दोहराव मात्र था—सरकारी मंच को खुलेआम राजनीतिक प्रचार का अड्डा बनाना, आत्ममुग्धता से लबालब बातें करना और वास्तविक मुद्दों से पूरी तरह कन्नी काट लेना।
शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि मोदी जी ने फिर एक बार साबित कर दिया कि वे जनता से नहीं, कैमरे से संवाद करते हैं। सीवान में उन्होंने अपने मंत्रियों और गठबंधन के सहयोगियों की गिनती तो की, लेकिन जानबूझकर उन चेहरों को नजरअंदाज किया जो सामाजिक न्याय और समानता के प्रतीक हैं। उन्होंने सीवान की मौजूदा महिला सांसद और गोपालगंज के दलित सांसद—दोनों का नाम लेना जरूरी नहीं समझा। क्या यह महज संयोग है? नहीं। यह मोदी जी की राजनीति में जातिगत भेदभाव और सत्ता की संकीर्ण सोच का स्पष्ट प्रमाण है।
इतना ही नहीं, सीवान की रैली में उन्होंने सारण और महाराजगंज के सांसदों, राजीव प्रताप रूडी और जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, का भी नाम लेना जरूरी नहीं समझा, जबकि भीड़ जुटाने में इन्हीं क्षेत्रों के लोगों को प्रशासनिक दबाव डालकर घसीटा गया था।
शैलेंद्र प्रताप सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि प्रधानमंत्री ने राजपूत समुदाय के नेताओं की सुनियोजित उपेक्षा की। जब सत्ता चाहिए थी तो राजपूतों को गले लगाया और जब सत्ता मिल गई तो उन्हें हाशिये पर फेंक दिया। न केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिहार से कोई राजपूत चेहरा, न एनडीए के किसी घटक दल में उनकी कोई अहम भूमिका—यह मोदी सरकार की राजनीतिक अवसरवादिता और राजपूत विरोधी मानसिकता का साफ संकेत है।
उन्होंने कहा कि सीवान की यह रैली हर पैमाने पर विफल रही—न जनसमर्थन जुटा, न सन्देश स्पष्ट हुआ और न ही कोई विकास की बात सामने आई। यह रैली मोदी जी की नैतिक पराजय और राजनीतिक थकान का जीवंत उदाहरण बनकर रह गई।