Shahpur Vidhansabha 2025: भोजपुर जिले की शाहपुर विधानसभा सीट (Constituency No. 198) बिहार की सियासत में एक बार फिर से चर्चा के केंद्र में है। यह सीट न सिर्फ अपने ऐतिहासिक राजनीतिक विरासत के लिए जानी जाती है, बल्कि यहां का जातीय संतुलन और सामाजिक समीकरण हर चुनाव में सत्ता का गणित बदल देता है। आरा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट लंबे समय से भोजपुर की राजनीति की धुरी रही है, जहां विचारधारा और जातीय समीकरण दोनों बराबर की भूमिका निभाते रहे हैं।
चुनावी इतिहास
1951 में हुए पहले आम चुनाव में यहां समाजवादी पार्टी के रामनंदन तिवारी ने जीत दर्ज की थी। उस दौर में शाहपुर समाजवादी और वामपंथी आंदोलनों का केंद्र रहा। 1970 और 80 के दशक में सीपीआई (CPI) और सीपीएम (CPM) जैसे वाम दलों का प्रभाव इतना मजबूत था कि मजदूर वर्ग और ग्रामीण तबके का बड़ा हिस्सा इन्हीं दलों के साथ खड़ा नजर आता था। परंतु 1990 के बाद जब बिहार में मंडल राजनीति का दौर शुरू हुआ, तो शाहपुर की राजनीतिक दिशा भी बदलने लगी।
2010 का चुनाव इस परिवर्तन का प्रतीक बना, जब भाजपा की मुन्नी देवी ने राजद के धर्मपाल सिंह को 8,211 वोटों से हराकर यह सीट जीत ली। हालांकि, 2015 में राजद ने वापसी की और राहुल तिवारी ने भाजपा के विश्वेश्वर ओझा को 14,570 वोटों से मात दी। इस चुनाव में राहुल तिवारी को 69,315 वोट मिले थे, जबकि ओझा 54,745 वोटों पर सिमट गए।
2020 में भी शाहपुर ने फिर से राजद पर भरोसा जताया। राहुल तिवारी ने निर्दलीय उम्मीदवार शोभा देवी को 22,883 वोटों के भारी अंतर से हराया। इस जीत के पीछे राहुल तिवारी की जमीनी पकड़, व्यक्तिगत संपर्क और विभिन्न जातीय समूहों के साथ मजबूत तालमेल को अहम माना गया।
जातीय समीकरण
जातीय समीकरण की बात करें तो, यादव और मुस्लिम मतदाता अब भी राजद के स्थायी समर्थक माने जाते हैं। वहीं भूमिहार, ब्राह्मण और व्यापारी वर्ग भाजपा-जदयू के साथ जाता है। दलित और अति पिछड़ा वर्ग का वोट बैंक हर बार स्थिति और प्रत्याशी के अनुसार विभाजित हो जाता है। यही वजह है कि शाहपुर में हर बार चुनावी मुकाबला सिर्फ दो दलों का नहीं, बल्कि कई सामाजिक समूहों का संग्राम बन जाता है।
शाहपुर विधानसभा की सियासत बिहार की उस परंपरा को दर्शाती है, जहां विचारधारा, जाति और स्थानीय समीकरण—तीनों मिलकर राजनीति की दिशा तय करते हैं। इसलिए 2025 का चुनाव सिर्फ सीट की लड़ाई नहीं, बल्कि उस सामाजिक समीकरण की भी परीक्षा होगी जिसने दशकों से भोजपुर की राजनीति को दिशा दी है।






















