बिहार की सियासत में गया जिला हमेशा राजनीतिक रूप से सक्रिय रहा है, और इसी जिले की शेरघाटी विधानसभा सीट (संख्या 226) ने समय-समय पर सत्ता परिवर्तन और जनभावनाओं के उतार-चढ़ाव का गवाह बनकर राज्य की राजनीति की दिशा तय की है। 1957 में पहली बार इस सीट पर चुनाव हुए, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियों के चलते लंबे समय तक यहां मतदान नहीं हो सका। 2010 में जब यह सीट पुनः सक्रिय हुई, तो यहां से नई राजनीतिक कहानी की शुरुआत हुई — जिसमें कभी जनता दल यूनाइटेड (JDU) का वर्चस्व रहा तो अब राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का प्रभाव दिख रहा है।
चुनावी इतिहास
1957 से लेकर 1972 तक शेरघाटी में कांग्रेस और निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा देखने को मिला। कांग्रेस के जयराम गिरी 1972 में यहां से विधायक बने थे। लेकिन 1977 से यह सीट बोधगया विधानसभा में विलीन हो गई और 33 साल तक शेरघाटी के मतदाता एक अलग पहचान से वंचित रहे। 2010 में जब परिसीमन के बाद शेरघाटी को फिर से विधानसभा क्षेत्र घोषित किया गया, तब JDU ने यहां मजबूत वापसी की।
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JDU नेता विनोद प्रसाद यादव ने 2010 और 2015 के चुनाव में लगातार जीत दर्ज कर यह संदेश दिया कि पार्टी की पकड़ यहां गहरी है। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव में यह समीकरण पूरी तरह उलट गया। RJD की मंजू अग्रवाल ने विनोद यादव को 16,690 वोटों के बड़े अंतर से पराजित कर RJD के पक्ष में हवा बना दी। यह जीत केवल एक सीट तक सीमित नहीं रही — बल्कि गया जिले में RJD के जनाधार के विस्तार का संकेत भी बनी।
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2020 के चुनाव में शेरघाटी में बहुकोणीय मुकाबला देखने को मिला। RJD की मंजू अग्रवाल ने जहां JDU के दो बार के विधायक विनोद यादव को हराया, वहीं LJP के मुकेश यादव 24 हजार वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। AIMIM के मसरूर आलम ने 14 हजार वोट हासिल किए, जबकि जन अधिकार पार्टी के उमैर खान को 11 हजार वोट मिले। यह परिणाम बताता है कि शेरघाटी की राजनीति अब केवल द्विपक्षीय नहीं रही, बल्कि यहां तीसरी और चौथी ताकतें भी धीरे-धीरे अपना आधार मजबूत कर रही हैं।
जातीय समीकरण
शेरघाटी का सामाजिक समीकरण भी इसकी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। यहां यादव और मुस्लिम समुदाय की आबादी अच्छी-खासी संख्या में है, जो हर चुनाव में परिणाम को प्रभावित करती है। 2020 में इन दोनों समुदायों के एकजुट वोट ने RJD की जीत सुनिश्चित की। वहीं, JDU के पारंपरिक समर्थक वर्गों में विभाजन और लोजपा जैसे दलों की उपस्थिति ने नीतीश कुमार की पार्टी को नुकसान पहुंचाया।






















