सहरसा जिले की सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा सीट Simri Bakhtiyarpur Vidhan Sabha (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 76) बिहार की राजनीति में हमेशा से खास महत्व रखती रही है। इस सीट का राजनीतिक इतिहास काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है, जिसमें कांग्रेस, जनता दल, जेडीयू और आरजेडी बारी-बारी से अपनी पकड़ बनाते रहे हैं। यही वजह है कि सिमरी बख्तियारपुर को बिहार की राजनीति का ‘पलटीबाज सीट’ भी कहा जाता है।
चुनावी इतिहास
अगर इतिहास पर नजर डालें तो 1967 के चुनाव में कांग्रेस के चौधरी मोहम्मद सलाहुद्दीन ने जीत हासिल की थी। हालांकि, दो साल बाद 1969 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) ने यहां से कांग्रेस को पटखनी दी और रामचंद्र प्रसाद विजयी बने। लेकिन 1972 में मोहम्मद सलाहुद्दीन ने वापसी करते हुए कांग्रेस का परचम लहराया और लगातार 1977, 1980 और 1985 में भी जीत दर्ज कर कांग्रेस की पकड़ मजबूत बनाए रखी।
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1990 में यहां समीकरण बदल गए और जनता दल के दिनेश चंद्र यादव ने कांग्रेस का वर्चस्व तोड़ दिया। हालांकि 1995 और 2000 के चुनाव में कांग्रेस के महबूब अली कैसर ने सीट फिर से कांग्रेस की झोली में डाल दी। लेकिन 2005 आते-आते जेडीयू के दिनेश चंद्र यादव ने दो बार हुए चुनावों में लगातार जीत दर्ज कर अपनी ताकत साबित की। 2009 के उपचुनाव में कांग्रेस ने महबूब अली कैसर के दम पर वापसी की, लेकिन 2010 में जेडीयू के अरुण कुमार ने कांग्रेस को बाहर कर दिया।
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2015 के चुनाव में भी जेडीयू के अरुण यादव ने जीत का सिलसिला जारी रखा, लेकिन 2019 के उपचुनाव में समीकरण फिर पलटे और पहली बार यह सीट आरजेडी के खाते में चली गई। आरजेडी के जफर आलम ने जीत दर्ज कर इस सीट को पार्टी के लिए खास बना दिया।
2020 का चुनाव और भी दिलचस्प रहा। इस बार आरजेडी के युसुफ सलाहुद्दीन ने वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी को कड़े मुकाबले में हराकर जीत दर्ज की। युसुफ सलाहुद्दीन को 75,684 वोट मिले जबकि मुकेश सहनी को 73,925 वोट हासिल हुए। महज 1,759 वोटों के अंतर से हुई यह जीत सिमरी बख्तियारपुर की राजनीति के कांटे की टक्कर वाले स्वभाव को दर्शाती है। तीसरे स्थान पर लोजपा के संजय कुमार सिंह रहे जिन्हें 6,962 वोट मिले, जबकि 1,407 वोटरों ने NOTA का विकल्प चुना।
जातीय समीकरण
इस सीट पर जातीय समीकरण भी काफी अहम भूमिका निभाते हैं। यादव और मुस्लिम मतदाता यहां निर्णायक स्थिति में रहते हैं। इसके अलावा ब्राह्मण, राजपूत, कोइरी, कुर्मी, रविदास और पासवान समुदाय भी मतदान के परिणामों को गहराई से प्रभावित करते हैं। कुल 2,83,053 मतदाताओं में पुरुषों की हिस्सेदारी 51.82% और महिलाओं की हिस्सेदारी 48.18% है।
सिमरी बख्तियारपुर की सियासी कहानी साफ दिखाती है कि यहां की जनता बदलाव को लेकर हमेशा सजग रहती है और बार-बार दल बदलकर अपनी नाराजगी या समर्थन दर्ज कराती है। आने वाले चुनाव में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या आरजेडी अपने विजय क्रम को जारी रख पाती है या फिर जेडीयू और अन्य दल इस सीट पर दोबारा पैर जमाने में सफल होते हैं।






















