Siwan Vidhan Sabha 2025: बिहार की राजनीति में सिवान विधानसभा सीट (निर्वाचन क्षेत्र संख्या 105) हमेशा सुर्खियों में रहती है। यह सीट सिर्फ भौगोलिक और जनसंख्या के लिहाज से ही नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रभाव और बड़े नेताओं की मौजूदगी की वजह से भी खास महत्व रखती है। सिवान विधानसभा कई बार सत्तारूढ़ समीकरण बदलने वाली साबित हुई है। यही कारण है कि 2025 का विधानसभा चुनाव यहां एक बार फिर दिलचस्प मुकाबले की ओर इशारा कर रहा है।
चुनावी इतिहास
सिवान की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो 1980 के दशक से इस सीट पर अवध बिहारी चौधरी का दबदबा रहा है। उन्होंने कांग्रेस से शुरुआत की थी, लेकिन 1980 का चुनाव हारने के बाद 1985 से फरवरी 2005 तक लगातार पांच बार जीत दर्ज कर राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ बनाई। इस दौरान वे जेएनपी, जनता दल और फिर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) जैसे दलों से चुनाव जीतते रहे। हालांकि, 2005 में तस्वीर बदली और भाजपा के व्यासदेव प्रसाद ने इस सीट पर कब्जा जमाया। व्यासदेव ने अक्टूबर 2005, 2010 और 2015 में जीत हासिल की। 2015 में महागठबंधन की रणनीति के चलते सीट जेडीयू के खाते में चली गई, तब अवध बिहारी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और तीसरे स्थान पर रहे।
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2020 का विधानसभा चुनाव इस सीट की राजनीति के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। अवध बिहारी चौधरी राजद के टिकट पर मैदान में उतरे और भाजपा उम्मीदवार ओम प्रकाश यादव को 1973 वोटों से हराकर सिवान में वापसी की। राजद प्रत्याशी अवध बिहारी को 76052 वोट मिले, जबकि भाजपा के ओम प्रकाश यादव को 74491 वोटों पर संतोष करना पड़ा। वहीं, लंबे समय तक यहां प्रभाव बनाए रखने वाले व्यासदेव प्रसाद बतौर निर्दलीय चुनाव लड़कर महज 1846 वोट ही पा सके।
जातीय समीकरण और मतदाता गणित
सिवान विधानसभा सीट का चुनावी गणित जातीय समीकरण पर ही टिका हुआ है। यहां मुस्लिम और यादव मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इनकी संख्या इतनी अधिक है कि लगभग हर दल की रणनीति इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है। इसके अलावा ब्राह्मण और राजपूत मतदाताओं की भी मजबूत उपस्थिति है, जो भाजपा के पक्ष में झुकाव रखते हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार इस विधानसभा क्षेत्र की कुल आबादी 4,21,487 है, जिसमें 67.95% ग्रामीण और 32.05% शहरी है। अनुसूचित जाति की आबादी 10.13% और अनुसूचित जनजाति की 2.33% है। 2019 की मतदाता सूची में कुल 3,03,677 पंजीकृत मतदाता दर्ज हैं। इन आंकड़ों से साफ है कि यह सीट पूरी तरह से बहुजातीय और बहुध्रुवीय राजनीति का केंद्र है।
2025 में मुकाबले का समीकरण
2025 के चुनाव में सिवान सीट पर फिर से कड़ा मुकाबला होने की संभावना है। राजद के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न है क्योंकि अवध बिहारी चौधरी ने यहां से जीत दर्ज कर पार्टी को ताकत दी थी। वहीं भाजपा इस सीट पर अपनी खोई जमीन वापस पाने की पूरी कोशिश में है। ब्राह्मण और राजपूत वोटरों को साधने की रणनीति भाजपा की मजबूरी भी है और ताकत भी। दूसरी ओर, मुस्लिम-यादव गठजोड़ अगर राजद के साथ मजबूती से खड़ा रहा तो भाजपा को कड़ी चुनौती मिलेगी।
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सिवान विधानसभा की राजनीति का भविष्य इस बार सिर्फ उम्मीदवारों की लोकप्रियता पर ही नहीं, बल्कि जातीय समीकरण, स्थानीय मुद्दों और राज्यस्तरीय राजनीतिक हवा पर भी निर्भर करेगा। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि दशकों से बदलते समीकरणों के बावजूद सिवान किसे अपना प्रतिनिधि चुनता है।






















